रमाशंकर राजभर ने पहलगाम में आतंकवादी हमले के जवाब में भारत के मजबूत, सफल एवं निर्णायक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर संसद के निचले सदन में विशेष चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमला हुआ और इसके 17 दिन बाद ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया गया, जबकि देश हमले के तीसरे दिन ही कार्रवाई चाहता था।
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उन्होंने कहा, 22 अप्रैल को हमला होता है, इसके 17 दिन बाद ऑपरेशन सिंदूर चलाया जाता है। देश में इतना गुस्सा था कि वह (आतंकी हमले के) तीसरे दिन ही चाह रहा था कि ऑपरेशन सिंदूर नहीं, बल्कि ‘ऑपरेशन तंदूर’ चलाया जाए और आतंकवादियों को लाकर उसी तंदूर में डाल दिया जाए।
सपा सांसद ने कहा कि रक्षा मंत्री (राजनाथ सिंह) ने इसी सदन में बताया कि हमने 100 आतंकियों को मार गिराया, लेकिन इनमें (पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले) वे चार आतंकी मारे गए या नहीं, यह बात सामने नहीं आई। देश जानना चाहता है। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों की मंशा थी कि वे धर्म पूछकर लोगों को मारेंगे और पूरे देश में दंगा भड़क जाएगा, लेकिन देशभर में हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मिलकर इस नापाक मंसूबे को नाकाम कर दिया।
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सपा सदस्य ने संघर्ष विराम से संबंधित अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे का उल्लेख करते हुए कहा, ट्रंप ने 26 बार कहा कि उन्होंने ‘युद्ध विराम’ कराया है। उन्होंने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कहा कि दोनों देशों (भारत और पाकिस्तान) को व्यापार समझौतों का हवाला देकर परमाणु युद्ध टलवाया।
उन्होंने कहा, संघर्ष विराम कराने का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा यदि सही है तो इसका मतलब है कि हमने सैन्य और कूटनीतिक फैसला लेने की स्वतंत्रता खो दी। राजभर ने सवाल किया, क्या भारत ने अमेरिका के कहने पर ‘युद्ध विराम’ स्वीकार किया? क्या इसमें अमेरिका की कोई भूमिका थी? क्या वास्तव में (भारतीय वायुसेना के) लड़ाकू विमान गिराए गए थे। भारतीयों को यह बात अपने प्रधानमंत्री से सुनने को क्यों नहीं मिली? ट्रंप से सुनने को क्यों मिली?
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सपा सांसद ने कहा कि संघर्ष विराम कराने संबंधी ट्रंप की टिप्पणियां हमारी सेना के पेशेवर तौर-तरीकों को कम करके आंकती हैं, ऑपरेशन सिंदूर को गलत रूप में पेश करती हैं। उन्होंने कहा कि अगर वास्तव में (भारत का) कोई लड़ाकू विमान गिराया गया था, तो जनता को बताया जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ था तो सरकार रिकॉर्ड ठीक क्यों नहीं कर रही है।
उन्होंने यह भी सवाल किया कि अगर भारत की सैन्य कार्रवाई सही थी तो दुनिया के 32 देशों में 59 सदस्यीय (सर्वदलीय) प्रतिनिधिमंडल क्यों भेजे गए और उसका क्या लाभ हासिल हुआ? उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले के कुछ ही हफ्ते बाद पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा वॉशिंगटन आमंत्रित करना आतंकवाद समर्थक एक संस्था को वैश्विक वैधता देने जैसा था और भारत सरकार राष्ट्रीय शोक के समय भी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में विफल रही।
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सपा सांसद ने कहा कि पहलगाम में धर्म के आधार पर हत्याएं होने के बावजूद भारत न तो इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी (इस्लामिक सहयेाग संगठन) में इस झूठे विमर्श को चुनौती दे सका और न ही मुस्लिम जगत से एकजुटता हासिल कर सका, जबकि ये देश भारत के करीबी सहयोगी थे।
उन्होंने नरेन्द्र मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए कहा, पूरे विश्व की सुर्खियां ट्रंप के दावे और समर्थन से भरी रहीं, जबकि भारत अंतरराष्ट्रीय मीडिया में एक सुंसगत, मुखर और आधिकारिक पक्ष पेश करने में विफल रहा। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour
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