नई दिल्ली, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) के अंतर्गत राष्ट्रीय खेल विज्ञान और अनुसंधान केंद्र (एनसीएसएसआर) ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम स्थित एसएआई मुख्यालय में अपनी संस्थागत नैतिक समिति (आईईसी) की पहली बैठक आयोजित की।
साई मीडिया की ओर से बुधवार को बताया गया कि वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के निदेशक प्रोफेसर और सामुदायिक चिकित्सा के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर जुगल किशोर की अध्यक्षता में आयोजित इस बैठक में प्रमुख संस्थानों और सरकारी निकायों के प्रतिष्ठित समिति सदस्य शामिल हुए। चर्चाएं अनुसंधान अनुमोदनों के लिए नैतिक प्रोटोकॉल के मानकीकरण, प्रतिभागियों के कल्याण की सुरक्षा और एनसीएसएसआर की सभी अनुसंधान पहलों में वैज्ञानिक अखंडता सुनिश्चित करने पर केंद्रित रहीं।
साई सचिव विष्णु कांत तिवारी ने कहा कि आईईसी की स्थापना खेल विज्ञान अनुसंधान में नैतिकता के उच्चतम मानकों को बनाए रखने की हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह समिति एनसीएसएसआर के तहत सभी वैज्ञानिक प्रयासों में पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रतिभागियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
सदस्य सचिव के रूप में कार्यरत एनसीएसएसआर के निदेशक ब्रिगेडियर (डॉ.) बिभु कल्याण नायक ने केंद्र द्वारा विभिन्न अंतः विषय अनुसंधान परियोजनाओं पर काम शुरू करने के दौरान मजबूत नैतिक निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, हमारा उद्देश्य केवल खेल विज्ञान को आगे बढ़ाना नहीं है, बल्कि इसे ज़िम्मेदारी और नैतिक रूप से आगे बढ़ाना है। उन्होंने आगे कहा, इस पहली बैठक में हुए विचार-विमर्श भविष्य के सभी कार्यों के लिए आधारशिला का काम करेंगे।
सत्र के दौरान समिति ने शोध परियोजना प्रस्तुत करने, मूल्यांकन और निगरानी की प्रक्रियाओं की समीक्षा की। साथ ही एथलीटों और मानव विषयों से संबंधित अध्ययनों पर भी चर्चा की। प्रमुख चिंताओं में सूचित सहमति, डेटा सुरक्षा और एथलीटों के स्वास्थ्य और प्रदर्शन पर शोध का दीर्घकालिक प्रभाव शामिल थे।
प्रोफेसर जुगल किशोर ने कहा, मानव विषयों से जुड़े शोध में, खासकर खेल विज्ञान में जहां शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों कारक भूमिका निभाते हैं, नैतिक जांच अनिवार्य है। उन्होंने आगे कहा, एक नैतिक समिति के रूप में हमारी भूमिका शोध में बाधा डालना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि यह शोध गरिमा, सावधानी और जवाबदेही के साथ किया जाए।
बैठक का समापन इस साझा संकल्प के साथ हुआ कि अनुसंधान के हर चरण में योजना और अनुमोदन से लेकर कार्यान्वयन और प्रकाशन तक नैतिक चिंतन को एकीकृत किया जाएगा।———————–
(Udaipur Kiran) / वीरेन्द्र सिंह
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