राजस्थान के लोक देवता बाबा रामदेव जी की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है। वे न सिर्फ धार्मिक गुरु थे, बल्कि एक ऐसे संत भी थे जिन्होंने समाज में समानता, शांति और सद्भाव का संदेश दिया। लेकिन उनके जीवन के अंतिम क्षणों में एक रहस्य छिपा है, जिसने सभी को चौंका दिया। जीवित समाधी – यह शब्द सुनते ही मन में सवाल उठता है, "आखिर क्यों और कैसे बाबा रामदेव ने जीवित समाधी ली?"
बाबा रामदेव का अद्भुत जीवनबाबा रामदेव का जन्म राजस्थान के पोकरण में हुआ था। उनका जीवन लोककल्याण, भक्तिरचनाओं और समाज सेवा से भरा हुआ था। उन्होंने दूसरी जातियों और धर्मों के बीच भेदभाव को समाप्त करने के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी समर्पित कर दी। इसके साथ ही उन्होंने नवलेश्वर महादेव, रामदेवरा मंदिर और भगवान शिव की पूजा करते हुए अपार श्रद्धा और भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया।
जीवित समाधी लेने का रहस्यबाबा रामदेव के जीवन का सबसे रहस्यमय और चौंकाने वाला पहलू है उनकी जीवित समाधी।
कहा जाता है कि बाबा रामदेव अपने जीवन के अंतिम समय में आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए संपूर्ण रूप से समाधी लेने की सोच चुके थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को यह कहकर बताया कि वे अब शरीर के बंधनों से मुक्त होने जा रहे हैं।
"मैं जीवित समाधी लूंगा, और मुझे यह समाधी हर समय आवश्यकता के अनुसार मार्गदर्शन देगी।"
बाबा रामदेव ने जीवित समाधी लेने के लिए गहरी ध्यान मुद्रा में बैठने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि उन्होंने खुद को आध्यात्मिक रूप से तैयार किया, और एक दिन बिना किसी शारीरिक हलचल के समाधी में चले गए। यह घटना रामदेवरा मंदिर में हुई, और उनके शरीर की स्थिति को देखकर सभी श्रद्धालु चमत्कृत रह गए।
यह समाधी न केवल उनके अनुयायियों के लिए एक चमत्कारी घटना थी, बल्कि यह एक आध्यात्मिक संदेश भी था कि सत्य की प्राप्ति के लिए समर्पण और आस्था की शक्ति अपरंपार होती है।
जीवित समाधी का महत्वबाबा रामदेव के जीवित समाधी लेने के बाद उनकी समाधी स्थल को रामदेवरा मंदिर के रूप में स्थापित किया गया। उनके समाधी स्थल पर हर साल लाखों श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते हैं, और उनके अद्भुत जीवन और संदेश को याद करते हैं। भक्तों का मानना है कि बाबा रामदेव का जीवित समाधी लेना केवल एक शारीरिक घटना नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक सत्य की खोज का प्रतीक था, जो आज भी लोगों को प्रेरित करता है।
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