हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और शुभ आरंभ का प्रतीक माना गया है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत हो या व्यापार में सफलता की कामना, प्रथम पूज्य गणपति की आराधना अनिवार्य मानी जाती है। ऐसे में अगर आप जीवन में आर्थिक संकट, धन की तंगी या व्यापार में रुकावटों का सामना कर रहे हैं, तो "गणेशाष्टकम्" का नियमित पाठ आपकी परेशानियों का समाधान बन सकता है।
गणेशाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। यह आठ श्लोकों में विभाजित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तुति है जो भगवान गणेश की महिमा, स्वरूप, गुण और कृपा को श्रद्धापूर्वक व्यक्त करती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन से धीरे-धीरे सभी प्रकार की आर्थिक बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और माता लक्ष्मी की कृपा स्थायी रूप से घर में बनी रहती है।
गणेशाष्टकम् में वर्णित हर एक श्लोक न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मबल भी प्रदान करता है। जब इसे श्रद्धा और नियम से पाठ किया जाता है, तो यह हमारे मन और वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।विशेषज्ञों और पंडितों के अनुसार, गणेशाष्टकम् का पाठ प्रातःकाल स्नान के बाद शुद्ध स्थान पर बैठकर करना चाहिए। दीप जलाकर, भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर इस स्तोत्र का ध्यानपूर्वक जाप करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। शुक्रवार और बुधवार के दिन विशेष फलदायक माने जाते हैं, परंतु इसे नित्य पढ़ना अत्यधिक लाभकारी होता है।
इस स्तोत्र में भगवान गणेश के मुख, शरीर, नेत्र, वाहन, आभूषणों और गुणों का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया गया है, जिससे पाठक का मन भक्ति में रम जाता है और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। यह ना केवल भौतिक सुख-संपत्ति को आकर्षित करता है, बल्कि बाधाओं से लड़ने की आंतरिक शक्ति भी देता है।गणेशाष्टकम् का पाठ उन लोगों के लिए भी अत्यंत उपयोगी माना गया है जो अपने व्यापार, नौकरी, परीक्षा या किसी कार्य में बार-बार विघ्न का सामना कर रहे हैं। इस स्तोत्र का प्रभाव मानसिक संकल्प, स्थिरता और आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायता करता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेशाष्टकम् का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा, ग्रहदोष और पितृदोष जैसे प्रभाव भी दूर हो सकते हैं। यह परिवार में सुख-शांति और सामंजस्य बनाए रखने में सहायक है। जहां नियमित रूप से यह स्तोत्र पढ़ा जाता है, वहां लक्ष्मी का वास स्थायी होता है।