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लड्डू गोपाल को स्नान कराने के बाद उस जल का क्या करें, जानें प्रेमानंदजी महाराज से

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हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और भगवान की सेवा की विशेष महत्ता है। विशेषकर जब बात बाल रूप भगवान श्रीकृष्ण यानी लड्डू गोपाल की होती है, तो भक्तजन उन्हें संतान समान सेवा भाव से पालते हैं – जैसे सुबह उठाना, स्नान कराना, वस्त्र पहनाना, भोग लगाना और रात को सुलाना। लड्डू गोपाल का हर कार्य पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है – मंगला स्नान।

पर क्या आपने कभी सोचा है कि लड्डू गोपाल को स्नान कराने के बाद जो जल बचता है, उसका क्या करना चाहिए? इस विषय पर प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज ने बहुत ही सरल और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मार्गदर्शन किया है। आइए जानते हैं क्या कहते हैं प्रेमानंद जी महाराज इस शुभ जल के संबंध में।

लड्डू गोपाल के जल में होती है दिव्यता

प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, जब आप लड्डू गोपाल को स्नान कराते हैं, तो वह केवल जल नहीं रहता, वह चरणामृत बन जाता है। क्योंकि यह जल सीधे भगवान के शरीर को स्पर्श करता है, इसलिए उसमें दिव्य ऊर्जा, सकारात्मकता और आध्यात्मिक शक्ति आ जाती है।

यह जल मात्र एक स्नान जल नहीं होता, बल्कि पूजा का भाग बन जाता है। इसे कभी भी फेंका नहीं जाना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है और भक्त के पुण्य का ह्रास भी कर सकता है।

क्या करें इस पवित्र जल का?

प्रेमानंद जी महाराज का सुझाव है कि इस जल को श्रद्धा से चरणामृत के रूप में ग्रहण करें या परिवार के अन्य सदस्यों को भी दें। यदि आप स्वयं नहीं पीना चाहते, तो इसे घर के तुलसी पौधे में चढ़ाएं या आंगन में छिड़कें। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक वातावरण बना रहता है।

कुछ भक्त इस जल को अपने पालतू पशु-पक्षियों को भी देते हैं, यह मानकर कि भगवान की कृपा उन पर भी बनी रहे। ध्यान रखें कि इस जल को नाली या शौचालय में बहाना शास्त्रविरोधी और अनुचित माना गया है।

स्नान जल में क्या मिलाना चाहिए?

प्रेमानंद जी महाराज यह भी बताते हैं कि लड्डू गोपाल को स्नान कराने से पहले जल में गंगाजल, कुश, तुलसी पत्र, केसर, और पंचामृत जैसे पवित्र तत्व मिलाने से उसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। इससे वह जल और भी दिव्य और ऊर्जावान हो जाता है।

निष्कर्ष:

लड्डू गोपाल की सेवा केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि भक्ति का साक्षात अनुभव है। जब हम उन्हें स्नान कराते हैं, तो वह जल पवित्र चरणामृत बन जाता है। प्रेमानंद जी महाराज की वाणी के अनुसार, उस जल का आदर करना हमारी भक्ति की पूर्णता का प्रमाण है। उसे फेंकने की बजाय श्रद्धा से ग्रहण करें या घर के पवित्र स्थानों में अर्पित करें। इससे न केवल भक्त को आध्यात्मिक फल प्राप्त होता है, बल्कि उसका घर भी शुद्ध और ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है।

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