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भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह: त्रियुगीनारायण मंदिर की धार्मिक महत्ता

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भगवान शिव का विशेष दिन

हिंदू धर्म में सोमवार का दिन भगवान शिव के लिए समर्पित है। सावन के महीने में शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दौरान भक्त शिव के मंदिरों में जाकर दर्शन करते हैं। यदि आप भी भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा पाना चाहते हैं, तो आप भी मंदिर में जा सकते हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान शिव ने वैराग्य छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। इस विवाह में सभी देवी-देवताओं ने भाग लिया।


विवाह का स्थान

भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रियुगीनारायण गांव में हुआ था। यहां त्रियुगीनारायण मंदिर स्थित है, जो गंगा और मंदाकिनी सोन नदी के संगम पर बना है। यह सुंदर गांव 1,900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ है। सर्दियों में यहां बर्फबारी से इस स्थान की सुंदरता और बढ़ जाती है।


धार्मिक मान्यताएं

इस मंदिर का प्राकृतिक दृश्य मनमोहक है, लेकिन यहां की धार्मिक मान्यताएं भक्तों को आकर्षित करती हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में आज भी वह पवित्र अग्नि जल रही है, जिसे भगवान शिव और मां पार्वती ने विवाह के समय साक्षी माना था। यह अग्नि तीन युगों से जल रही है, इसलिए इसे त्रिजुगी नारायण मंदिर कहा जाता है।


इसके अलावा, जो भी व्यक्ति अखंड ज्योत की भभूत अपने साथ ले जाता है, उसका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। इस मंदिर की धार्मिक मान्यता इतनी प्रबल है कि लोग यहां विवाह करने के लिए आते हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां विवाह करने वाले जोड़े को भगवान शिव और पार्वती का आशीर्वाद मिलता है।


ब्रह्मा और विष्णु की भूमिका

इस विवाह में भगवान विष्णु ने मां पार्वती के भाई की सभी रस्में निभाईं, जबकि ब्रह्मा जी ने विवाह यज्ञ के आचार्य का कार्य किया। मंदिर के सामने स्थित विवाह स्थल को ब्रह्म शिला के नाम से जाना जाता है। पुराणों में इस स्थान का महात्म्य वर्णित है। कहा जाता है कि विवाह संपन्न कराने से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान किया था, इसलिए यहां रुद्र, विष्णु और ब्रह्म नामक तीन कुंड भी बने हुए हैं।


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