News India Live, Digital Desk: भारत के नक्शे पर जब हम अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को देखते हैं, तो वे अक्सर खूबसूरत beaches और छुट्टियों की जगह लगते हैं. लेकिन ये सिर्फ़ टापू नहीं हैं, ये हिंद महासागर में भारत की वो stratégic 'आंख और कान' हैं, जो देश की सुरक्षा के लिए बेहद अहम हैं. और इसी द्वीप समूह के दक्षिणी छोर पर स्थित 'ग्रेट निकोबार' में एक ऐसा प्रोजेक्ट आकार ले रहा है, जिसे भारत का 'गेम चेंजर' और चीन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द माना जा रहा है.आसान भाषा में समझिए 'मलक्का स्ट्रेट' का पूरा खेलइस प्रोजेक्ट को समझने से पहले एक कहानी समझनी होगी - चीन की सबसे बड़ी कमजोरी की कहानी, जिसका नाम है 'मलक्का स्ट्रेट'. यह इंडोनेशिया और मलेशिया के बीच एक संकरा समुद्री रास्ता है. चीन का 80% से ज़्यादा कच्चा तेल और दुनिया भर से आने वाला सामान इसी रास्ते से होकर गुजरता है. आसान भाषा में कहें तो यह चीन की 'लाइफ़लाइन' है.अगर कभी तनाव की स्थिति बनती है, तो भारत इस रास्ते को आसानी से ब्लॉक कर सकता है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सप्लाई ठप पड़ सकती है. इसी डर को 'मलक्का डिलेमा' कहते हैं. अब कल्पना कीजिए, इसी संकरे रास्ते के ठीक मुहाने पर, ग्रेट निकोबार में भारत एक विशाल बंदरगाह, नौसैनिक अड्डा और एयरबेस बना ले तो क्या होगा? यही वो 'ब्रह्मास्त्र' है, जो चीन की नींद उड़ाए हुए है.क्या है ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट?मोदी सरकार इस द्वीप पर 75,000 करोड़ रुपये की लागत से एक मेगा प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. इसके तहत यहां एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट बनाया जाएगा, जो सिंगापुर और दुबई जैसे पोर्ट को टक्कर देगा. साथ ही एक नया एयरपोर्ट, एक आधुनिक शहर और पावर प्लांट भी बनाया जाएगा. यह प्रोजेक्ट न सिर्फ भारत को व्यापार का एक नया केंद्र बनाएगा, बल्कि हिंद महासागर में हमारी सैन्य ताकत को कई गुना बढ़ा देगा. यहां से भारतीय नौसेना और वायुसेना पूरे मलक्का स्ट्रेट और आसपास के समुद्री रास्ते पर चौबीसों घंटे नज़र रख सकेगी.लेकिन... इतना अहम प्रोजेक्ट एक दशक से ज़्यादा क्यों रुका रहा?आज यह प्रोजेक्ट तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि देश की सुरक्षा के लिए इतने ज़रूरी प्रोजेक्ट को अमल में लाने में इतनी देरी क्यों हुई? रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब UPA की सरकार थी, तब इस प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरण संबंधी चिंताएं जताई गई थीं. उस समय सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) और तत्कालीन पर्यावरण मंत्रालय ने इस पर कई आपत्तियां लगाई थीं, जिससे यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई.उस दौरान यह तर्क दिया गया कि इस प्रोजेक्ट से द्वीप के पर्यावरण, जंगल और वहां रहने वाली जनजातियों को नुकसान पहुंचेगा. इन चिंताओं की वजह से यह महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट सालों तक फाइलों में ही दबा रहा, जबकि दूसरी तरफ चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी पैठ बढ़ाता रहा.आज की भू-राजनीतिक सच्चाई यह है कि भारत के लिए अपनी समुद्री सीमाओं और व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित रखना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया है. ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट इसी दिशा में एक निर्णायक कदम है, जो हिंद महासागर में शक्ति संतुलन को हमेशा के लिए भारत के पक्ष में झुका सकता है.
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