News India Live, Digital Desk: जब बात भारतीय विवाह की आती है, तो रीति-रिवाज़ और परंपराएं अपनी खास जगह रखती हैं. इनमें से कुछ परंपराओं के पीछे गहरे पौराणिक महत्व छिपे होते हैं, तो कुछ हमारे बड़े-बुजुर्गों की समझदारी का प्रतीक होती हैं. एक ऐसी ही दिलचस्प और भावुक परंपरा है बेटी की विदाई से जुड़ा एक नियम – बुधवार को क्यों नहीं होती बेटी की विदाई? आपने शायद सुना होगा कि बेटियों को बुधवार के दिन ससुराल के लिए विदा नहीं किया जाता. आखिर इसके पीछे क्या वजह है, आइए जानते हैं.बुधवार को क्यों नहीं करते बेटी की विदाई?माना जाता है कि बुधवार के दिन किसी शुभ काम की शुरुआत या लंबी यात्रा करना उतना अच्छा नहीं होता. खासकर बेटियों की विदाई जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसका सीधा संबंध बुध ग्रह से है. ज्योतिष के अनुसार, बुध को चंद्रमा का पुत्र माना जाता है. कहते हैं, चंद्रमा की दशा अस्थिर होने के कारण बुध की प्रवृत्ति में भी चंचलता और अनिश्चितता होती है. इस वजह से यह दिन यात्रा और महत्वपूर्ण फैसलों के लिए बहुत शुभ नहीं माना जाता. ऐसी मान्यता है कि बुधवार को बेटी की विदाई करने से कई परेशानियां आ सकती हैं. जैसे कि:बेटी के वैवाहिक जीवन में बार-बार अड़चनें आ सकती हैं.उसे आर्थिक परेशानियां या किसी दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है.कई बार यह भी माना जाता है कि बुधवार की विदाई के बाद बेटी या उसके माता-पिता के बीच आपसी दूरियां आ सकती हैं.यही वजह है कि हमारे पूर्वज इस दिन को विदाई जैसे भावुक और महत्वपूर्ण कार्य के लिए उचित नहीं मानते थे, ताकि बेटी अपने नए घर में हमेशा खुशहाल रहे.पौराणिक कथा: बुधवार और चंद्रमा का संबंधपौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार चंद्रमा ने अपनी गुरु पत्नी तारा का अपहरण कर लिया था, जिससे गुरुदेव बेहद दुखी हुए. इस घटना के बाद तारा को एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने बुध रखा. लेकिन तारा यह नहीं जानती थीं कि बुध का पिता कौन है, चंद्रमा या गुरु बृहस्पति? इसी कारण बुध ग्रह में कुछ अस्थिरता मानी जाती है. ज्योतिष में, चंद्रमा को यात्रा और माता का कारक ग्रह भी माना जाता है. जब कोई बेटी घर से विदा होती है, तो यह माता और पुत्री दोनों के लिए एक भावनात्मक क्षण होता है, और बुध को अस्थिर प्रवृत्ति वाला ग्रह माना गया है. इसलिए यह भी कहा जाता है कि इस दिन विदाई से माता और पुत्री के रिश्तों में दूरियां आ सकती हैं या फिर जीवन में स्थिरता की कमी हो सकती है.ये परंपराएं भले ही प्राचीन लगें, लेकिन इनके पीछे हमेशा अपने प्रियजनों के भले और उनके सुखमय जीवन की कामना छुपी होती है. आखिर बेटियों का सुख ही तो उनके माता-पिता की सबसे बड़ी इच्छा होती है!
You may also like
विकसित भारत 2047 पर उकेरी कल्पनाएं, चित्रकला प्रतियोगिता में 107 प्रतिभागियों ने दिखाया हुनर
मजेदार जोक्स: पापा, “सिंगल” कौन होता है?
भारत में 'Ozempic' को मिली मंजूरी...शुरू करने से पहले आप भी जान लें नुकसान
महंगाई भत्ता में बंपर बढ़ोतरी! जानिए कब और कितनी बढ़ेगी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी
अक्षय खन्ना बने 'असुरगुरु शुक्राचार्य', 'महाकाली' से फर्स्ट लुक देख फैंस को आई 'कल्कि 2898 एडी' के अमिताभ की याद