आगरा: 302 किलोमीटर लंबा लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे ने जहां सफर आसान किया है तो वहीं इस पर हादसे भी आए दिन हो रहे हैं। ज्यादातर हादसे रात के समय में होते हैं। जो हादसे हो रहे हैं, वो आधी रात 12 बजे से सुबह 8 बजे के बीच हैं। इनमें ज्यादातर हादसे झपकी आने की वजह से होते हैं।
उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) ने अधिवक्ता के.सी. जैन को जो आंकड़े दिए हैं, उससे हादसा का समय स्पष्ट हो गया है। सबसे ज्यादा हादसे रात 12 बजे से सुबह 8 बजे आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे पर हादसे हुए हैं। उपलब्ध कराए गए आंकड़े जनवरी 2025 से सितंबर 2025 तक के हैं।
जनवरी से सितंबर तक आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर कुल 1077 हादसे हुए हैं, जिसमें 583 लोगों की मौत हुई है। वहीं, 494 हादसे दिन में हुए हैं। लोगों की जो मौतें हुई हैं, उनमें दिन की तुलना में रात के आंकड़े ज्यादा है।
यही हाल यमुना एक्सप्रेसवे का भी है। यहां भी रात के समय में सफर सुरक्षित नहीं है। रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच सबसे ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है। यमुना एक्सप्रेसवे पर दिसंबर 2012 से अगस्त 2018 के बीच 272 हादसे हुए है, जिनमें 170 हादसे रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच हुए हैं। राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, रात 12 से 3 बजे के बीच 5.1 और 3 से सुबह 6 बजे के लिए 4.7 फीसदी हादसे हुए हैं।
रात के सफर में क्यों बढ़ती है मौतों की संभावनाड्राइवरों की नींद और झपकी: लंबे सफर में थकान से चालक नींद की गिरफ्त में आ जाते हैं।
अत्यधिक रफ्तार:रात में ट्रैफिक कम होने के कारण लोग 140-150 किमी/घंटा तक गाड़ी दौड़ाते हैं।
लेन अनुशासन की कमी: धीमे और तेज वाहन एक ही लेन में चलते हैं, जिससे टकराव का जोखिम बढ़ता है।
सुविधाओं की अनुपलब्धता: रुकने, सोने या चाय पीने के लिए कोई सस्ती जगह नहीं।
अंधेरा और दृश्यता की कमी: खराब रोशनी और हाई-बीम का दुरुपयोग भी हादसों को आम बनाता है।
लंबा एकसार रास्ता, जिससे एकाग्रता कम होती है
सड़क पर पर्याप्त चेतावनी संकेतों की कमी
अधिवक्ता के. सी. जैन ने कहा - लापरवाही हैअधिवक्ता के.सी. जैन ने कहा कि रात में एक्सप्रेसवे पर जो हो रहा है, वह सड़क हादसे नहीं, बल्कि नींद और लापरवाही से हुई हत्याएं हैं। रात में गाड़ियों की रफ्तार 140 तक पहुंच जाती है। हादसों के आंकड़ों का नियमित रूप से विश्लेषण कर इनके आधार पर आवश्यक पहल करनी होगी, अन्यथा एक्सप्रेसवे नहीं, यह ‘एक्सप्रेस डेथवे’ कहलाएगा।
उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) ने अधिवक्ता के.सी. जैन को जो आंकड़े दिए हैं, उससे हादसा का समय स्पष्ट हो गया है। सबसे ज्यादा हादसे रात 12 बजे से सुबह 8 बजे आगरा लखनऊ एक्सप्रेसवे पर हादसे हुए हैं। उपलब्ध कराए गए आंकड़े जनवरी 2025 से सितंबर 2025 तक के हैं।
जनवरी से सितंबर तक आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर कुल 1077 हादसे हुए हैं, जिसमें 583 लोगों की मौत हुई है। वहीं, 494 हादसे दिन में हुए हैं। लोगों की जो मौतें हुई हैं, उनमें दिन की तुलना में रात के आंकड़े ज्यादा है।
यही हाल यमुना एक्सप्रेसवे का भी है। यहां भी रात के समय में सफर सुरक्षित नहीं है। रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच सबसे ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है। यमुना एक्सप्रेसवे पर दिसंबर 2012 से अगस्त 2018 के बीच 272 हादसे हुए है, जिनमें 170 हादसे रात 12 बजे से सुबह छह बजे के बीच हुए हैं। राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, रात 12 से 3 बजे के बीच 5.1 और 3 से सुबह 6 बजे के लिए 4.7 फीसदी हादसे हुए हैं।
रात के सफर में क्यों बढ़ती है मौतों की संभावनाड्राइवरों की नींद और झपकी: लंबे सफर में थकान से चालक नींद की गिरफ्त में आ जाते हैं।
अत्यधिक रफ्तार:रात में ट्रैफिक कम होने के कारण लोग 140-150 किमी/घंटा तक गाड़ी दौड़ाते हैं।
लेन अनुशासन की कमी: धीमे और तेज वाहन एक ही लेन में चलते हैं, जिससे टकराव का जोखिम बढ़ता है।
सुविधाओं की अनुपलब्धता: रुकने, सोने या चाय पीने के लिए कोई सस्ती जगह नहीं।
अंधेरा और दृश्यता की कमी: खराब रोशनी और हाई-बीम का दुरुपयोग भी हादसों को आम बनाता है।
लंबा एकसार रास्ता, जिससे एकाग्रता कम होती है
सड़क पर पर्याप्त चेतावनी संकेतों की कमी
अधिवक्ता के. सी. जैन ने कहा - लापरवाही हैअधिवक्ता के.सी. जैन ने कहा कि रात में एक्सप्रेसवे पर जो हो रहा है, वह सड़क हादसे नहीं, बल्कि नींद और लापरवाही से हुई हत्याएं हैं। रात में गाड़ियों की रफ्तार 140 तक पहुंच जाती है। हादसों के आंकड़ों का नियमित रूप से विश्लेषण कर इनके आधार पर आवश्यक पहल करनी होगी, अन्यथा एक्सप्रेसवे नहीं, यह ‘एक्सप्रेस डेथवे’ कहलाएगा।
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