नई दिल्ली: दुनिया का अमेरिका पर से ऐतबार उठने लगा है। अमेरिकी शटडाउन के बीच भारतीय दिग्गजों में अब एक बड़े सवाल पर चर्चा गरम हो गई है। आज के दौर में इसकी कल्पना ही रूह कंपा देती है। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब हम सोचते हैं कि गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, और चैटजीपीटी जैसे प्लेटफॉर्म अचानक बंद हो जाएं तो क्या होगा। जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी पर भारत की बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि अगर अमेरिका अचानक अपनी टेक्नोलॉजी का एक्सेस बंद कर दे तो भारत का डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। उन्होंने 10 साल के 'नेशनल मिशन फॉर टेक रेजिलिएंस' की अपील की है।
यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब देश अपने मजबूत पक्षों को 'हथियार' की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। चीन ने रेयर अर्थ पर नियंत्रण करके दुनिया के सामने इसका नमूना पेश किया है। अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी उसके सामने सरेंडर करना पड़ा। रेयर अर्थ सेमिकंडक्टर चिप, हाईटेक हथियारों, सोलर पैनल, टर्बाइन इत्यादि बनाने के लिए जरूरी है।
हर्ष गोयनका ने उठाया सवालउद्योगपति हर्ष गोयनका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अमेरिका के संदर्भ में इसी तरह का डर जाहिर किया था। कारण है कि टेक्नोलॉजी को लेकर अमेरिका पर हमारी निर्भरता बहुत ज्यादा है। मेटा, गूगल और एक्स जैसी उसकी कंपनियां भारत समेत दुनिया में छाई हुई हैं। गोयनका ने पूछा था कि क्या हम ऐसे किसी भी हालात के लिए तैयार हैं? उन्होंने कहा था, 'सोचिए, यह डरावना है, है ना! बस इसके नतीजों के बारे में गंभीरता से सोचें और हमारा प्लान बी क्या हो सकता है।'
दांव पर 200 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्थाजानकारों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो आर्थिक तबाही मच सकती है। नैस्कॉम के 2025 के अनुमानों के मुताबिक, अचानक टेक्नोलॉजी बंद होने से भारत की 200 अरब डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। इससे 50 करोड़ से ज्यादा यूजर्स प्रभावित होंगे। विज्ञापन से होने वाली कमाई का 60% तक नुकसान हो सकता है।
ऐसे में प्लान बी के तौर पर भारत में बने विकल्पों को बढ़ावा देना शामिल है। मसलन, क्लाउड सेवाओं के लिए जोहो और नेक्स्टक्लाउड, मैसेजिंग के लिए अरट्टई और ओपन-सोर्स एआई मॉडल जैसे भषिणी। जानकारों ने कहा कि हमने 5 साल में UPI बनाया है तो 18 महीने में संप्रभुता यानी अपनी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता हासिल करना संभव है।
हाल के भू-राजनीतिक तनाव ने दुनिया की स्थिति को बहुत तेजी से बदल दिया है। इस माहौल में किसी भी चीज की निर्भरता सही नहीं मानी जा रही है। यह दूसरे को आपका इस्तेमाल करने की ताकत देता है। अमेरिका और चीन के संदर्भ में दुनिया ने इसे देखा है। यही कारण है कि स्थानीय समाधानों की मांग तेज हो गई है।
यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब देश अपने मजबूत पक्षों को 'हथियार' की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। चीन ने रेयर अर्थ पर नियंत्रण करके दुनिया के सामने इसका नमूना पेश किया है। अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी उसके सामने सरेंडर करना पड़ा। रेयर अर्थ सेमिकंडक्टर चिप, हाईटेक हथियारों, सोलर पैनल, टर्बाइन इत्यादि बनाने के लिए जरूरी है।
हर्ष गोयनका ने उठाया सवालउद्योगपति हर्ष गोयनका ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अमेरिका के संदर्भ में इसी तरह का डर जाहिर किया था। कारण है कि टेक्नोलॉजी को लेकर अमेरिका पर हमारी निर्भरता बहुत ज्यादा है। मेटा, गूगल और एक्स जैसी उसकी कंपनियां भारत समेत दुनिया में छाई हुई हैं। गोयनका ने पूछा था कि क्या हम ऐसे किसी भी हालात के लिए तैयार हैं? उन्होंने कहा था, 'सोचिए, यह डरावना है, है ना! बस इसके नतीजों के बारे में गंभीरता से सोचें और हमारा प्लान बी क्या हो सकता है।'
दांव पर 200 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्थाजानकारों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो आर्थिक तबाही मच सकती है। नैस्कॉम के 2025 के अनुमानों के मुताबिक, अचानक टेक्नोलॉजी बंद होने से भारत की 200 अरब डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। इससे 50 करोड़ से ज्यादा यूजर्स प्रभावित होंगे। विज्ञापन से होने वाली कमाई का 60% तक नुकसान हो सकता है।
ऐसे में प्लान बी के तौर पर भारत में बने विकल्पों को बढ़ावा देना शामिल है। मसलन, क्लाउड सेवाओं के लिए जोहो और नेक्स्टक्लाउड, मैसेजिंग के लिए अरट्टई और ओपन-सोर्स एआई मॉडल जैसे भषिणी। जानकारों ने कहा कि हमने 5 साल में UPI बनाया है तो 18 महीने में संप्रभुता यानी अपनी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता हासिल करना संभव है।
हाल के भू-राजनीतिक तनाव ने दुनिया की स्थिति को बहुत तेजी से बदल दिया है। इस माहौल में किसी भी चीज की निर्भरता सही नहीं मानी जा रही है। यह दूसरे को आपका इस्तेमाल करने की ताकत देता है। अमेरिका और चीन के संदर्भ में दुनिया ने इसे देखा है। यही कारण है कि स्थानीय समाधानों की मांग तेज हो गई है।
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