रामबाबू मित्तल, मुजफ्फरनगर: भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत और मुजफ्फरनगर के सांसद हरेंद्र मलिक की मुलाकात ने पश्चिमी यूपी की सियासत में हलचल पैदा कर दी है। यह बैठक मंगलवार को दिल्ली के 20 जनपथ स्थित सांसद हरेंद्र मलिक के आवास पर सम्पन्न हुई, जिसमें दोनों नेताओं के बीच क्षेत्रीय किसानों से जुड़े मुद्दों और कई सामयिक विषयों पर चर्चा हुई।
हालांकि, यह मुलाकात सार्वजनिक रूप से किसान मुद्दों पर केंद्रित मानी जा रही है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने भी गहरे बताए जा रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह कयास तेज हो गए हैं कि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह मुलाकात ‘जाट वोट बैंक’ को साधने की एक रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है। ऐसे में नरेश टिकैत जैसे किसान नेता और हरेंद्र मलिक जैसे प्रभावशाली सांसद की मुलाकात को सिर्फ औपचारिक नहीं माना जा सकता। इस मुलाकात को लेकर भले ही कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया हो, लेकिन जानकारों का मानना है कि यह राजनीतिक समीकरणों की एक नई बुनियाद भी रख सकती है।
गौरतलब है कि भाकियू पिछले कुछ समय से सक्रिय भूमिका में है और किसानों के मुद्दों को लेकर लगातार सरकार पर दबाव बनाती रही है। ऐसे में यदि यह किसान संगठन किसी भी सियासी दिशा में झुकाव दिखाता है, तो इसका असर आगामी चुनावों पर साफ दिखाई दे सकता है।
इस बैठक के जरिए न केवल किसान मुद्दों को उठाने का प्रयास किया गया, बल्कि जाट नेताओं के बीच संभावित एकजुटता का भी संकेत मिला है। अब देखना होगा कि यह मुलाकात भविष्य में क्या राजनीतिक रूप लेती है और इसके क्या नतीजे सामने आते हैं।
हालांकि, यह मुलाकात सार्वजनिक रूप से किसान मुद्दों पर केंद्रित मानी जा रही है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने भी गहरे बताए जा रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह कयास तेज हो गए हैं कि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह मुलाकात ‘जाट वोट बैंक’ को साधने की एक रणनीति का हिस्सा हो सकती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाट समुदाय की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है। ऐसे में नरेश टिकैत जैसे किसान नेता और हरेंद्र मलिक जैसे प्रभावशाली सांसद की मुलाकात को सिर्फ औपचारिक नहीं माना जा सकता। इस मुलाकात को लेकर भले ही कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया हो, लेकिन जानकारों का मानना है कि यह राजनीतिक समीकरणों की एक नई बुनियाद भी रख सकती है।
गौरतलब है कि भाकियू पिछले कुछ समय से सक्रिय भूमिका में है और किसानों के मुद्दों को लेकर लगातार सरकार पर दबाव बनाती रही है। ऐसे में यदि यह किसान संगठन किसी भी सियासी दिशा में झुकाव दिखाता है, तो इसका असर आगामी चुनावों पर साफ दिखाई दे सकता है।
इस बैठक के जरिए न केवल किसान मुद्दों को उठाने का प्रयास किया गया, बल्कि जाट नेताओं के बीच संभावित एकजुटता का भी संकेत मिला है। अब देखना होगा कि यह मुलाकात भविष्य में क्या राजनीतिक रूप लेती है और इसके क्या नतीजे सामने आते हैं।
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