चेन्ने: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को कल्याणकारी योजनाओं में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों के नाम व तस्वीरों के उपयोग पर रोक लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए आदेश को निरस्त कर दिया कि यह याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजरिया की पीठ ने याचिकाकर्ता और अन्नाद्रमुक नेता सी. वी. षणमुगम पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। कोर्ट ने कहा कि यह जनहित याचिका दरअसल राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित थी और इसमें कोई वास्तविक जनहित नहीं है।
याचिका में क्या था
बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने 31 जुलाई को दिए अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह किसी भी नई या पुनः प्रारंभ की गई जनकल्याणकारी योजना का नाम जीवित व्यक्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों या द्रमुक नेताओं के नाम पर न रखे। इसके अलावा, इन योजनाओं के प्रचार में किसी राजनीतिक दल के झंडे, चिह्न या नेताओं की तस्वीरें न लगाने का निर्देश भी दिया गया था। यह आदेश मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के ‘उंगलुदन स्टालिन’ (आपके साथ, स्टालिन) नामक संपर्क अभियान पर सवाल उठाते हुए दायर की गई जनहित याचिका पर आया था। याचिकाकर्ता षणमुगम ने आरोप लगाया था कि इस तरह की योजनाएं सरकारी संसाधनों के माध्यम से व्यक्तिगत या दलगत प्रचार को बढ़ावा देती हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
सरकार को राहत
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी याचिकाएं न केवल अनुचित हैं, बल्कि न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग भी हैं। न्यायालय ने यह भी दोहराया कि जनहित याचिकाओं का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से द्रमुक सरकार को राहत मिली है और वह अब कल्याणकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री या अन्य नेताओं की तस्वीरों और नाम का उपयोग कर सकती है।
याचिका में क्या था
बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने 31 जुलाई को दिए अपने आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह किसी भी नई या पुनः प्रारंभ की गई जनकल्याणकारी योजना का नाम जीवित व्यक्तियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों या द्रमुक नेताओं के नाम पर न रखे। इसके अलावा, इन योजनाओं के प्रचार में किसी राजनीतिक दल के झंडे, चिह्न या नेताओं की तस्वीरें न लगाने का निर्देश भी दिया गया था। यह आदेश मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन के ‘उंगलुदन स्टालिन’ (आपके साथ, स्टालिन) नामक संपर्क अभियान पर सवाल उठाते हुए दायर की गई जनहित याचिका पर आया था। याचिकाकर्ता षणमुगम ने आरोप लगाया था कि इस तरह की योजनाएं सरकारी संसाधनों के माध्यम से व्यक्तिगत या दलगत प्रचार को बढ़ावा देती हैं, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
सरकार को राहत
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसी याचिकाएं न केवल अनुचित हैं, बल्कि न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग भी हैं। न्यायालय ने यह भी दोहराया कि जनहित याचिकाओं का उपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से द्रमुक सरकार को राहत मिली है और वह अब कल्याणकारी योजनाओं में मुख्यमंत्री या अन्य नेताओं की तस्वीरों और नाम का उपयोग कर सकती है।
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