नई दिल्ली : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की शुरूआत करते हुए पाकिस्तान को चेताया भी और मजाक भी उड़ाया। चर्चा के दौरान राजनाथ सिंह विपक्ष पर भी आक्रामक दिखे। उन्होंने विपक्ष के एक-एक सवालों का काफी सधे अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने इस दौरान पाकिस्तान की तुलना मेंढक से कर दी।
किसी भी इंपोर्टेंट एसेट को नुकसान नहीं
राजनाथ सिंह ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देने से पहले हमारी सेनाओं ने हर पहलू का गंभीरता से अध्ययन किया। कई विकल्प था पर उसे चुना जिसमें आतंकी ठिकानों को अधिकतम नुकसान पहुंचे पर आम नागरिकों को नुकसान ना पहुंचे। पाकिस्तान के हमले को हमारी सेनाओं ने असफल किया। एस- 400, MRSAM, आकाश मिसाइल सिस्टम और एडी गन प्रभावी साबित हुई। पाक किसी भी टारगेट को हिट नहीं कर पाया। हमारे किसी भी इंपोर्टेंट एसेट को नुकसान नहीं हुआ है।
शेर अगर मेंढक को मारे तो...
राजनाथ सिंह ने कहा कि हम यह जानते हैं कि युद्ध अपनी बराबरी वालों से करना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास ने यही लिखा है कि प्रीत और बैर बराबरी वालों से होना चाहिए। शेर यदि मेढकों को मारे तो उसका बहुत अच्छा संदेश नहीं जाता है। हमारे देश की सेना शेर है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जैसा देश जो साइज, सामर्थ्य और समृद्धि में हमारे आसपास भी नहीं है उस मुल्क से कैसा मुकाबला। जो मुल्क अपने अस्तित्व के लिए दूसरों पर आश्रित हो उससे मुकाबले का मतलब है अपना स्तर कम करना। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारा पाकिस्तान विरोध उनकी आतंक की नीति के खिलाफ है।
विपक्ष और उनके सवालों की तुलना की
राजनाथ सिंह ने कहा कि 4 दशक से ज्यादा वक्त से राजनीति में हूं। हम भी विपक्ष में रहे हैं और सवाल पूछे हैं। 1962 में चीन के साथ युद्ध में दुखद परिणाम आए तो हमने पूछा कि हमारे देश की धरती पर दूसरे देश का कब्जा कैसे। हमने पूछा था कि हमारी सेना और जनता अपमानित क्यों, ये पूछा कि हमारे सैनिक बड़ी संख्या में हताहत क्यों हुए। हमने ये नहीं पूछा कि हमारे टैंक, हमारी मशीनें, हमारी बंदूकें क्यों ध्वस्त हो गई। हमने मशीनों और तोपों की चिंता न करके देश की टेरिटरी और सैनिकों की चिंता की।
1971 के युद्ध में जब हमने पाक को सबक सिखाया, हमने राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की प्रशंसा की। ये नहीं देखा कि किस दल की किस विचारधारा की सरकार है। हमारे नेता अटल बिहारी ने संसद में खड़े होकर उस वक्त के नेतृत्व की प्रशंसा की थी। खुशी जाहिर की थी कि शत्रु को सबक सिखाया। हमने यह नहीं पूछा था कि सबके सिखाने के दौरान भारत के कितने विमान गिरे, कितने इक्विपमेंट बर्बाद हुए।
बातचीत सभ्य मुल्कों से
राजनाथ सिंह ने कहा कि सभ्य मुल्कों में बातचीत होती है। लोकतांत्रित देशों के बीच बातचीत होती है। ऐसा देश जिसके वजूद मे लोकतंत्र का एक कतरा भी नहीं है उसके साथ संवाद किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता। क्योंकि आतंक की भाषा जो होती है वह खून, डर और नफरत है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पागलपन नहीं है यह सोची समझी साजिश का हिस्सा है। यह आतंक को एक पॉलिटिकल टूल की तरह इस्तेमाल करती है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारा पाक के साथ कोई सीमा का संघर्ष नहीं बल्कि सभ्यता बनाम बर्बरता का संघर्ष है। पाकिस्तान के हुक्मरान जानते हैं कि उनके सैनिक युद्ध के मैदान में नहीं जीत सकते इसलिए आतंक को पालते हैं, प्रशिक्षण देते हैं। दुनिया के सामने खड़े होकर निर्दोष बनने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि हम अगर शांति की आशा के लिए हाथ बढ़ाना जानते हैं तो आतंक फैलान वाले हाथों को उखाड़ना भी जानते हैं। श्रीकृष्ण से सीखा है कि शिशुपाल की सौ गलतियां माफ की जा सकती है पर अंत में धर्म की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र उठाना ही पड़ता है। भारत पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाता है लेकिन कोई धोखा दे तो कलाई मरोड़ना भी जानता है। अब हमने सुदर्शन चक्र उठा लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी दलों ने अपने राजनीतिक मतभेद अलग रखे और देश के साथ, सैनिकों के साथ सौलिडेरिटी दिखाई। यही इस देश के लोकतंत्र की खूबसूरती है।
किसी भी इंपोर्टेंट एसेट को नुकसान नहीं
राजनाथ सिंह ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देने से पहले हमारी सेनाओं ने हर पहलू का गंभीरता से अध्ययन किया। कई विकल्प था पर उसे चुना जिसमें आतंकी ठिकानों को अधिकतम नुकसान पहुंचे पर आम नागरिकों को नुकसान ना पहुंचे। पाकिस्तान के हमले को हमारी सेनाओं ने असफल किया। एस- 400, MRSAM, आकाश मिसाइल सिस्टम और एडी गन प्रभावी साबित हुई। पाक किसी भी टारगेट को हिट नहीं कर पाया। हमारे किसी भी इंपोर्टेंट एसेट को नुकसान नहीं हुआ है।
शेर अगर मेंढक को मारे तो...
राजनाथ सिंह ने कहा कि हम यह जानते हैं कि युद्ध अपनी बराबरी वालों से करना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास ने यही लिखा है कि प्रीत और बैर बराबरी वालों से होना चाहिए। शेर यदि मेढकों को मारे तो उसका बहुत अच्छा संदेश नहीं जाता है। हमारे देश की सेना शेर है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान जैसा देश जो साइज, सामर्थ्य और समृद्धि में हमारे आसपास भी नहीं है उस मुल्क से कैसा मुकाबला। जो मुल्क अपने अस्तित्व के लिए दूसरों पर आश्रित हो उससे मुकाबले का मतलब है अपना स्तर कम करना। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारा पाकिस्तान विरोध उनकी आतंक की नीति के खिलाफ है।
विपक्ष और उनके सवालों की तुलना की
राजनाथ सिंह ने कहा कि 4 दशक से ज्यादा वक्त से राजनीति में हूं। हम भी विपक्ष में रहे हैं और सवाल पूछे हैं। 1962 में चीन के साथ युद्ध में दुखद परिणाम आए तो हमने पूछा कि हमारे देश की धरती पर दूसरे देश का कब्जा कैसे। हमने पूछा था कि हमारी सेना और जनता अपमानित क्यों, ये पूछा कि हमारे सैनिक बड़ी संख्या में हताहत क्यों हुए। हमने ये नहीं पूछा कि हमारे टैंक, हमारी मशीनें, हमारी बंदूकें क्यों ध्वस्त हो गई। हमने मशीनों और तोपों की चिंता न करके देश की टेरिटरी और सैनिकों की चिंता की।
1971 के युद्ध में जब हमने पाक को सबक सिखाया, हमने राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व की प्रशंसा की। ये नहीं देखा कि किस दल की किस विचारधारा की सरकार है। हमारे नेता अटल बिहारी ने संसद में खड़े होकर उस वक्त के नेतृत्व की प्रशंसा की थी। खुशी जाहिर की थी कि शत्रु को सबक सिखाया। हमने यह नहीं पूछा था कि सबके सिखाने के दौरान भारत के कितने विमान गिरे, कितने इक्विपमेंट बर्बाद हुए।
बातचीत सभ्य मुल्कों से
राजनाथ सिंह ने कहा कि सभ्य मुल्कों में बातचीत होती है। लोकतांत्रित देशों के बीच बातचीत होती है। ऐसा देश जिसके वजूद मे लोकतंत्र का एक कतरा भी नहीं है उसके साथ संवाद किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता। क्योंकि आतंक की भाषा जो होती है वह खून, डर और नफरत है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पागलपन नहीं है यह सोची समझी साजिश का हिस्सा है। यह आतंक को एक पॉलिटिकल टूल की तरह इस्तेमाल करती है। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमारा पाक के साथ कोई सीमा का संघर्ष नहीं बल्कि सभ्यता बनाम बर्बरता का संघर्ष है। पाकिस्तान के हुक्मरान जानते हैं कि उनके सैनिक युद्ध के मैदान में नहीं जीत सकते इसलिए आतंक को पालते हैं, प्रशिक्षण देते हैं। दुनिया के सामने खड़े होकर निर्दोष बनने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि हम अगर शांति की आशा के लिए हाथ बढ़ाना जानते हैं तो आतंक फैलान वाले हाथों को उखाड़ना भी जानते हैं। श्रीकृष्ण से सीखा है कि शिशुपाल की सौ गलतियां माफ की जा सकती है पर अंत में धर्म की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र उठाना ही पड़ता है। भारत पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाता है लेकिन कोई धोखा दे तो कलाई मरोड़ना भी जानता है। अब हमने सुदर्शन चक्र उठा लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सभी दलों ने अपने राजनीतिक मतभेद अलग रखे और देश के साथ, सैनिकों के साथ सौलिडेरिटी दिखाई। यही इस देश के लोकतंत्र की खूबसूरती है।
You may also like
'हमारे पास एक आखिरी मौका', पांचवें टेस्ट से पहले गौतम गंभीर ने भरा खिलाड़ियों में जोश
SSC MTS Vacancy 2025: एसएससी एमटीएस वालों के लिए खुशखबरी, वैकेंसी घोषित, बढ़ गए हवलदार के पद, देखें नोटिस
मुंबई: वानखेड़े स्टेडियम से 6.52 लाख की आईपीएल जर्सी चोरी, एफआईआर दर्ज
Deoghar Accident : 18 कांवड़ियों की दर्दनाक मौत, झारखंड के देवघर में बड़ा हादसा, राहत कार्य में जुटा प्रशासन
शादी के बाद बीवीˈ को निकल आई दाढ़ी मूंछ, पति ने टटोला तो उड़ गए होश