धनबादः फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर का किरदार फैजल खान, असल जिंदगी के फहीम खान से प्रेरित है। साढ़े सोलह साल जेल की सजा काटने के बाद फहीम खान की रिहाई अब चर्चा की विषय है। सुपर हिट फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर तीन परिवारों के खूनी बदले की कहानी पर आधारित है। इन तीन परिवारों के तीन पात्र हैं- कोयला माफिया से नेता बने रामाधीर सिंह, कसाई सुल्तान कुरैशी और शाहिद खान। फिल्म में रामाधीर सिंह (तिग्मांशू धुलिया), शाहिद खान (जयदीप अहलावात) की हत्या की साजिश रचता है। कोयला के धंधे में वर्चस्व के लिए यह हत्या होती है। फिर कत्ल और अदावत का सिलसिला शाहिद के बेटे सरदार खान (मनोज बाजपेयी) और सरदार के बेटे फैजल खान (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) तक पहुंच जाता है। कसाई सुल्तान कुरैशी भी सरदार खान से बदला लेना चाहता है। रामाधीर और सुल्तान, सरदार से बदला लेने के लिए एक हो जाते हैं।
रामाधीर सिंह नहीं सूर्यदेव सिंह हैं केन्द्रीय पात्र
वासेपुर के स्थानीय लोगों का कहना है कि फिल्म में जो दिखाया गया है वह हकीकत से अलग है। वे फिल्म के प्रदर्शित होने के खिलाफ थे। फिल्म में कोयला माफिया और नेता रामाधीर सिंह का जिक्र है। लेकिन असल में कहानी के केन्द्रीय पात्र सूर्यदेव सिंह (सूरजदेव सिंह) हैं। सूर्यदेव सिंह ही वह असल बाहुबली थे जिन्होंने धनबाद जिले की कोयला खदानों को अपनी ताकत और खौफ से संचालित किया। सूर्यदेव सिंह ही कोल माफिया से राजनेता बने थे। वे 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर झरिया से विधायक बने थे। वे यहां से चार बार विधायक रहे। रामाधीर सिंह सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई हैं। फिल्म में रामाधीर सिंह को मरते हुए दिखाया गया है लेकिन हकीकत में वे अभी जिंदा हैं। वे अभी ट्रेड यूनियन लीडर विनोद सिंह की हत्या के जुर्म में जेल के अंदर हैं। उन्हें उम्रकैद की सजा मिली है। फिल्म में रामाधीर सिंह और फहीम खान के बीच खूनी संघर्ष काल्पनिक है।
धनबाद का बाहरी मोहल्ला है वासेपुर
वासेपुर दरअसल धनबाद शहर का बाहरी इलाका है। अब यह धनबाद के एक मुहल्ले के रूप में आबाद है। धनबाद मुख्य शहर से इसकी दूरी करीब 3 किलोमीटर है। इस मुहल्ले का नाम इंजीनियर अब्दुल वासे के नाम पर है। लेकिन बाद में यह मुहल्ला फहीम खान और साबिर आलम के गैंग के खूनी खेल के कारण कुख्यात हो गया। फहीम खान ने पिता की हत्या के बाद बदला लेने की कसम खायी थी। गैंगस्टर फहीम खान पर सगीर हसन की हत्या का आरोप लगा था। 2011 में कोर्ट ने इस मामले में फहीम को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। साढ़े सोलह साल जेल में बंद रहने के बाद कोर्ट के आदेश पर फहीम खान की रिहाई हुई है।
साबिर पर फहीम की मां और मौसी की हत्या का आरोप
साबिर आलम पर फहीम की मां नजमा खातून और मौसी शहनाज की हत्या का आरोप था। 2007 में धनबाद के कोर्ट ने सागीर आलम को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद सजा सुनायी थी। अक्टूबर 2001 में फहीम की मां नजमा खातून और मौसी शहनाज धनबाद के पुरानी बाजार की सब्जी पट्टी से खरीदारी कर लौट रहीं थीं। उसी समय साबीर आलम अपने समर्थकों के साथ आया और फैजल की मां और मौसी को गोलियों से भून दिया। फहीम और साबीर पहले दोस्त थे। 1980 के दशक में रेलवे का बड़ा स्टेशन होने के कारण यहां लोही तस्करी और स्क्रैप का धंधा तेजी से फलने फूलने लगा। इस धंधे को लेकर ही फहीम खान और और साबीर में ठन गयी थी। इसके बाद कोयला व्यापारियों से रंगदारी वसूलने का धंधा शुरू हो गया।
फहीम के बाद उसके बेटे इकबाल ने गैंग संभाली
फहीम खान के जेल जाने के बाद उसके बेटे इकबाल खान ने गैंग की कमान संभाली। फहीम खान का भांजा प्रिंस खान इकबाल का सहायक बन गया। दोनों मिल कर गैंग चलाने लगे। रंगदारी से बेहिसाब पैसा आने लगा। बाद में पैसा और वर्चस्व को लेकर इकबाल खान और प्रिंस खान में दुश्मनी हो गयी। अब भांजा प्रिंस खान ही अपने मामा फहीम खान का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा है। धनबाद में आज भी कोयला, जमीन और रियल एस्टेट के कारोबारियों से बड़े पैमाने पर रंगदारी वसूली जाती है।
पैसे को लेकर फहीम के बेटे और भांजे में दुश्मनी
इस रंगदारी से आने वाले पैसों को लेकर ही फहीम और प्रिंस के बीच अब नयी लड़ाई शुरू हुई है। 2023 में फहीम के बेटे इकबाल पर गोलियां चलीं थीं। इकबाल गोलियों से बुरी तरह घायल हो गया था। बहुत मुश्किल से उसकी जान बची थी। जब इकबाल का सहयोगी ढोलू मारा गया था। हमले का आरोप प्रिंस खान पर ही लगा था। प्रिंस खान पर इंटरपोल तक की नजर है। प्रिंस की रंगदारी वसूली का खौफ बिहार तक पहुंच गया है। बिहार और झारखंड की पुलिस उसे 91 मामलों में तलाश कर रही है।
रामाधीर सिंह नहीं सूर्यदेव सिंह हैं केन्द्रीय पात्र
वासेपुर के स्थानीय लोगों का कहना है कि फिल्म में जो दिखाया गया है वह हकीकत से अलग है। वे फिल्म के प्रदर्शित होने के खिलाफ थे। फिल्म में कोयला माफिया और नेता रामाधीर सिंह का जिक्र है। लेकिन असल में कहानी के केन्द्रीय पात्र सूर्यदेव सिंह (सूरजदेव सिंह) हैं। सूर्यदेव सिंह ही वह असल बाहुबली थे जिन्होंने धनबाद जिले की कोयला खदानों को अपनी ताकत और खौफ से संचालित किया। सूर्यदेव सिंह ही कोल माफिया से राजनेता बने थे। वे 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर झरिया से विधायक बने थे। वे यहां से चार बार विधायक रहे। रामाधीर सिंह सूर्यदेव सिंह के छोटे भाई हैं। फिल्म में रामाधीर सिंह को मरते हुए दिखाया गया है लेकिन हकीकत में वे अभी जिंदा हैं। वे अभी ट्रेड यूनियन लीडर विनोद सिंह की हत्या के जुर्म में जेल के अंदर हैं। उन्हें उम्रकैद की सजा मिली है। फिल्म में रामाधीर सिंह और फहीम खान के बीच खूनी संघर्ष काल्पनिक है।
धनबाद का बाहरी मोहल्ला है वासेपुर
वासेपुर दरअसल धनबाद शहर का बाहरी इलाका है। अब यह धनबाद के एक मुहल्ले के रूप में आबाद है। धनबाद मुख्य शहर से इसकी दूरी करीब 3 किलोमीटर है। इस मुहल्ले का नाम इंजीनियर अब्दुल वासे के नाम पर है। लेकिन बाद में यह मुहल्ला फहीम खान और साबिर आलम के गैंग के खूनी खेल के कारण कुख्यात हो गया। फहीम खान ने पिता की हत्या के बाद बदला लेने की कसम खायी थी। गैंगस्टर फहीम खान पर सगीर हसन की हत्या का आरोप लगा था। 2011 में कोर्ट ने इस मामले में फहीम को उम्रकैद की सजा सुनायी थी। साढ़े सोलह साल जेल में बंद रहने के बाद कोर्ट के आदेश पर फहीम खान की रिहाई हुई है।
साबिर पर फहीम की मां और मौसी की हत्या का आरोप
साबिर आलम पर फहीम की मां नजमा खातून और मौसी शहनाज की हत्या का आरोप था। 2007 में धनबाद के कोर्ट ने सागीर आलम को हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद सजा सुनायी थी। अक्टूबर 2001 में फहीम की मां नजमा खातून और मौसी शहनाज धनबाद के पुरानी बाजार की सब्जी पट्टी से खरीदारी कर लौट रहीं थीं। उसी समय साबीर आलम अपने समर्थकों के साथ आया और फैजल की मां और मौसी को गोलियों से भून दिया। फहीम और साबीर पहले दोस्त थे। 1980 के दशक में रेलवे का बड़ा स्टेशन होने के कारण यहां लोही तस्करी और स्क्रैप का धंधा तेजी से फलने फूलने लगा। इस धंधे को लेकर ही फहीम खान और और साबीर में ठन गयी थी। इसके बाद कोयला व्यापारियों से रंगदारी वसूलने का धंधा शुरू हो गया।
फहीम के बाद उसके बेटे इकबाल ने गैंग संभाली
फहीम खान के जेल जाने के बाद उसके बेटे इकबाल खान ने गैंग की कमान संभाली। फहीम खान का भांजा प्रिंस खान इकबाल का सहायक बन गया। दोनों मिल कर गैंग चलाने लगे। रंगदारी से बेहिसाब पैसा आने लगा। बाद में पैसा और वर्चस्व को लेकर इकबाल खान और प्रिंस खान में दुश्मनी हो गयी। अब भांजा प्रिंस खान ही अपने मामा फहीम खान का सबसे बड़ा दुश्मन बन बैठा है। धनबाद में आज भी कोयला, जमीन और रियल एस्टेट के कारोबारियों से बड़े पैमाने पर रंगदारी वसूली जाती है।
पैसे को लेकर फहीम के बेटे और भांजे में दुश्मनी
इस रंगदारी से आने वाले पैसों को लेकर ही फहीम और प्रिंस के बीच अब नयी लड़ाई शुरू हुई है। 2023 में फहीम के बेटे इकबाल पर गोलियां चलीं थीं। इकबाल गोलियों से बुरी तरह घायल हो गया था। बहुत मुश्किल से उसकी जान बची थी। जब इकबाल का सहयोगी ढोलू मारा गया था। हमले का आरोप प्रिंस खान पर ही लगा था। प्रिंस खान पर इंटरपोल तक की नजर है। प्रिंस की रंगदारी वसूली का खौफ बिहार तक पहुंच गया है। बिहार और झारखंड की पुलिस उसे 91 मामलों में तलाश कर रही है।
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