नई दिल्ली: 2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में 17 साल बाद कोर्ट का फैसला आ चुका है। एनआईए की विशेष अदालत के जज लाहोटी ने आदेश सुनाते हुए दो टूक कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। कोई धर्म आतंक की पैरवी नहीं करता। अदालत ने स्पष्ट कहा कि इस केस में फेक नैरेटिव’ बनाने का प्रयास किया गया। इसी के साथ कोर्ट ने पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। जज लहोटी ने फैसला देते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा। आरोपी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं।
'हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता'
मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट का आदेश आने से एक दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि मैं गर्व से कह सकता हूं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। कांग्रेस ने बहुसंख्यक समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन भारत की जनता ने इस झूठ को नकार दिया। अमित शाह ने 26/11 के मुंबई हमलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकी हमलों को लेकर हिंदुत्ववादी संगठनों को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे थे।
जब शाह ने चिदंबरम-दिग्विजय को घेराशाह ने कहा कि कांग्रेस ने वोटों के लिए आतंकवाद को धार्मिक रंग देने की कोशिश की। लेकिन भारत के लोगों ने इस झूठ को स्वीकार नहीं किया। केंद्रीय गृह मंत्री ने दावा किया कि कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ऐसा किया। पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने ही 'भगवा आतंकवाद' का शिगूफा छोड़ा। मैं गर्व से कहना चाहता हूं कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। अमित शाह ने ऑपरेशन सिंदूर पर बुधवार को राज्यसभा में चर्चा के दौरान बताया कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इसमें शामिल थे।
चिदंबरम ने ही छोड़ा था 'भगवा आतंकवाद' का शिगूफा
शाह ने आगे कहा कि अफजल गुरु को फांसी इसलिए नहीं दी जा सकी क्योंकि पी. चिदंबरम गृह मंत्री थे। शाह ने आरोप लगाया कि यह सब राजनीतिक फायदे के लिए किया गया। निर्दोष लोगों को जेल में डाला गया, प्रताड़ित किया गया और बदनाम किया गया। यह सब न्याय के लिए नहीं, बल्कि एक कहानी गढ़ने के लिए किया गया था जिससे चुनाव में फायदा हो सके। अमित शाह के बाद अब एनआईए कोर्ट ने भी अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता।
'ये केस हिंदू समुदाय को बदनाम करने की राजनीतिक साजिश थी'
एनआईए कोर्ट का आदेश आने के साथ ही बीजेपी ने कांग्रेस पर अटैक तेज कर दिए। बीजपी विधायक राम कदम ने कहा कि मालेगांव बम ब्लास्ट केस आरएसएस और हिंदू समुदाय को बदनाम करने की राजनीतिक साजिश थी। घटना के समय, जब कांग्रेस सत्ता में थी, हिंदू धार्मिक पहचान को आतंकवाद से जुड़ा बताने की कोशिश की गई थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 'भगवा आतंकवाद' शब्द गढ़ा। हमारे लिए भगवा पवित्र है। कांग्रेस ने इसे हिंसा और आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की।
कांग्रेस पर भड़के बीजेपी नेता
बीजेपी नेता ने कहा कि कांग्रेस ने हमारे साधुओं, पुजारियों और बहादुर सैन्य अधिकारियों को भी नहीं बख्शा। एक साध्वी, एक मेजर जिसने देश की सेवा की। उन सभी को इस साजिश में घसीटा गया। यह सिर्फ हमारी राय नहीं है। जांच में शामिल कुछ अधिकारियों ने भी खुलकर कहा है कि उन पर कांग्रेस सरकार का दबाव था।
2008 में हुआ था मालेगांव ब्लास्ट
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ। इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए। शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई।
2016 में एनआईए ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कई अन्य आरोपियों को बरी करते हुए एक आरोप पत्र दाखिल किया। घटना के लगभग 17 साल बाद आए इस फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। इस मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने सभी सात लोगों को बरी कर दिया है। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय इसमें आरोपी बनाए गए थे।
'हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता'
मालेगांव ब्लास्ट केस में कोर्ट का आदेश आने से एक दिन पहले ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि मैं गर्व से कह सकता हूं कि कोई भी हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। कांग्रेस ने बहुसंख्यक समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन भारत की जनता ने इस झूठ को नकार दिया। अमित शाह ने 26/11 के मुंबई हमलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकी हमलों को लेकर हिंदुत्ववादी संगठनों को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहे थे।
जब शाह ने चिदंबरम-दिग्विजय को घेराशाह ने कहा कि कांग्रेस ने वोटों के लिए आतंकवाद को धार्मिक रंग देने की कोशिश की। लेकिन भारत के लोगों ने इस झूठ को स्वीकार नहीं किया। केंद्रीय गृह मंत्री ने दावा किया कि कांग्रेस ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ऐसा किया। पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने ही 'भगवा आतंकवाद' का शिगूफा छोड़ा। मैं गर्व से कहना चाहता हूं कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता। अमित शाह ने ऑपरेशन सिंदूर पर बुधवार को राज्यसभा में चर्चा के दौरान बताया कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह भी इसमें शामिल थे।
चिदंबरम ने ही छोड़ा था 'भगवा आतंकवाद' का शिगूफा
शाह ने आगे कहा कि अफजल गुरु को फांसी इसलिए नहीं दी जा सकी क्योंकि पी. चिदंबरम गृह मंत्री थे। शाह ने आरोप लगाया कि यह सब राजनीतिक फायदे के लिए किया गया। निर्दोष लोगों को जेल में डाला गया, प्रताड़ित किया गया और बदनाम किया गया। यह सब न्याय के लिए नहीं, बल्कि एक कहानी गढ़ने के लिए किया गया था जिससे चुनाव में फायदा हो सके। अमित शाह के बाद अब एनआईए कोर्ट ने भी अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता।
'ये केस हिंदू समुदाय को बदनाम करने की राजनीतिक साजिश थी'
एनआईए कोर्ट का आदेश आने के साथ ही बीजेपी ने कांग्रेस पर अटैक तेज कर दिए। बीजपी विधायक राम कदम ने कहा कि मालेगांव बम ब्लास्ट केस आरएसएस और हिंदू समुदाय को बदनाम करने की राजनीतिक साजिश थी। घटना के समय, जब कांग्रेस सत्ता में थी, हिंदू धार्मिक पहचान को आतंकवाद से जुड़ा बताने की कोशिश की गई थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 'भगवा आतंकवाद' शब्द गढ़ा। हमारे लिए भगवा पवित्र है। कांग्रेस ने इसे हिंसा और आतंकवाद से जोड़ने की कोशिश की।
कांग्रेस पर भड़के बीजेपी नेता
बीजेपी नेता ने कहा कि कांग्रेस ने हमारे साधुओं, पुजारियों और बहादुर सैन्य अधिकारियों को भी नहीं बख्शा। एक साध्वी, एक मेजर जिसने देश की सेवा की। उन सभी को इस साजिश में घसीटा गया। यह सिर्फ हमारी राय नहीं है। जांच में शामिल कुछ अधिकारियों ने भी खुलकर कहा है कि उन पर कांग्रेस सरकार का दबाव था।
2008 में हुआ था मालेगांव ब्लास्ट
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ। इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए। शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई।
2016 में एनआईए ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कई अन्य आरोपियों को बरी करते हुए एक आरोप पत्र दाखिल किया। घटना के लगभग 17 साल बाद आए इस फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। इस मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने सभी सात लोगों को बरी कर दिया है। लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय इसमें आरोपी बनाए गए थे।
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