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Kartik Maas Katha 8 Adhyay : कार्तिक मास व्रत कथा महात्मय आठवां अध्याय 8

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श्री नारदजी बोले-कि हे राजन् ! अब मैं कार्तिक के व्रत की उद्यापन विधि सम्यक प्रकार से वर्णन करता हूं, उसे ध्यान देकर सुनिए। व्रती को चाहिए कि कार्तिक मास में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को व्रत के सम्पूर्ण फल प्राप्त्यर्थ और विष्णु भगवान् की प्रसन्नता के लिए उद्यापन करे। तुलसीजी के ऊपर सुन्दर चार दरवाजे बनावे। वन्दनवार तथा फूलों से सुसज्जित करे, चंवर से सुशोभित वह मण्डप बनावे। चारों द्वारों पर मिट्टी के बने हुए पुण्यशील, सुशील, जय और विजय नामक चार द्वारपालों को पृथक् पृथक् बैठावे। तुलसी की जड़ में चार रंगों से सुशोभित उत्तम सर्वतोभद्र का चक्र बनावे। उसके ऊपर पञ्चरत्न, नारियल रखे और शुद्ध वस्त्र से कलश को आच्छादित करे। उस कलश के ऊपर शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म और पीताम्बरधारी लक्ष्मीयुक्त विष्णु भगवान् का पूजन करे। कार्तिक मास का व्रती इन्द्रादि लोकपालों का पूजन मण्डप में करे, द्वादशी को विष्णु भगवान् जागे थे, त्रयोदशी को देवताओं ने विष्णु भगवान् का दर्शन किया था, चतुर्दर्श तिथि को देवताओं ने उनका पूजन किया था।इसीलिए भगवान् की उद्यापन पूजा चतुर्दशं तिथि को शान्त मन से की जाती है। इस दि संयम और शान्त चित्त से व्रत भी करना चाहिए अपने गुरु की आज्ञानुसार सुवर्ण की मूर्ति बनाका षोडशोपचार तथा विविध नैवेद्यादिकों से भगवान का पूजन करे। विविध प्रकार के मांगलिक गायन, वाद्य तथा कीर्तन करके उस रात्रिमें जागरण करे। जो प्राणी श्रद्धापूर्वक भगवान का कीर्तन करते हैं, उन लोगों के शत जन्म के एकत्रित किए हुए पाप भी विनष्ट हो जाते हैं जो लोग जागरण करके प्रेम-पूर्वक भगवान का कीर्तन तथा नृत्य करते हैं, उनको एक सहस्त्र गोदान का फल प्राप्त होता है। जो प्राणी भगवान् के सम्मुख नृत्य-गानपूर्वक कौतुक करते हैं, उनके अनेक जन्मार्जित पातक तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। जो प्राणी विष्णु भगवान् के सम्मुख नृत्यगीतादिक कौतुक करता हुआ जागरण करता है तथा उनके चरित्रों का पाठ करके विष्णु-भक्तों को प्रसन्न करता है, व्यर्थ की बातों का त्याग कर मुख से बांसुरी आदि बाजा बजाता है, इन भक्ति-भावनाओं से युक्त जो मनुष्य रात्रिभर जागरण करता है, उसे करोड़ों तीर्थों के करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। तदनन्तर पूर्णमासी को स्त्री सहित श्रेष्ठ तीस ब्राह्मणों को या केवल एक ही श्रेष्ठ ब्राह्मण को सपत्नीक सामर्थ्यानुसार पायसान्न भोजन करावे, क्योंकि इसी दिन विष्णु भगवान् ने भक्तों को वरदान दिया था और मत्स्यरूप धारण किया था; -अतः इस तिथि को दान, हवन, जप आदि जो कुछ भी विष्णु भगवान् के निमित्त होता है, वह अक्षय फल को देने वाला होता है, इस कारण व्रती उक्त एक या तीस ब्राह्मणों को पायसान्न भोजन करावे। तब देवताओं के देवता विष्णु भगवान् को तथा और देवताओं को अलग-अलग प्रसन्न करने के लिए "अतो देवा" इन दोनों वैदिक मंत्रों से तिल और पायसान्त्र का हवन करे। उन ब्राह्मणों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा दे, प्रणाम करे। पुनः विष्णुदेव की पूजा कर अन्य देवताओं तथा तुलसी का। तथा कपिला गौ का पूजन कार्तिकव्रती सावधानी से करे। व्रत का उपदेश करने वाले सपत्नीक गुरु तथा उन सपत्नीक ब्राह्मणों का वस्त्र, आभूषणादि से पूजन कर क्षमा की प्रार्थनाव करे।प्रार्थना मन्त्रों का अर्थ-आप सब लोगों की अनुकम्पा से मुझ पर विष्णु भगवान् सर्वदा प्रसन्न रहें। इस व्रत के करने से मेरे सात जन्मों के किए हुए पाप नष्ट हो जावें और मेरी सन्तान चिरञ्जीवी रहे। इस पूजा के द्वारा मेरी सभी अभिलाषाएं पूर्ण होवें, मेरी मृत्यु होने के पश्चात् मुझे अतिशय दुर्लभ विष्णुलोक प्राप्त होवे। व्रत करने वाला इस प्रकार ब्राह्मणों से क्षमा की प्रार्थना करे और उनको प्रसन्न करके विदा करे। पूजा की उन सम्पूर्ण वस्तुओं को गौ के साथ गुरु को दे दे। इसके पश्चात् बन्धुओं और मित्रों के साथ स्वयं भी भोजन करे। कार्तिक अथवा माघ मास के उद्यापन के नियम इसी प्रकार कहे गए हैं। इस प्रकार जो प्राणी विधान-सहित कार्तिक मास का व्रत और उद्यापन करता है, वह पापरहित होकर मनोभिलषित कामनाओं को प्राप्त करता है, अन्त में विष्णुलोक निवास करता है। तीर्थों, दानों तथा सब व्रतों करने से जो फल प्राप्त होते हैं, उनसे करोड़गुना अधिक पुण्य-फल विधिपूर्वक कार्तिक मास का व्रत करने से मिलता है। वे प्राणी धन्य हैं, वे पूजनीय हैं और उन्हीं का इस संसार में जन्म लेना सफल है जिन्होंने विष्णु भगवान् की भक्ति में तल्लीन होते हुए कार्तिक मास का व्रत किया है। कार्तिक मास का व्रत करने वाले के पुण्यभय से उसके समस्त पाप कांपते जाते हैं और इधर-उधर भांगते फिरते हैं और कहते हैं कि अब हमारा जाना कहां होगा। इस कार्तिक मास के व्रत के विधान को जो भक्तिपूर्वक सुनता है, या वैष्णवों के सम्मुख सुनाता है ये दोनों इस व्रत द्वारा इस व्रत से प्राप्त होने वाले पापनाशक सभी फल प्राप्त करते हैं।
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