रियाद: सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच बीते हफ्ते, 17 सितंबर को ऐतिहासिक रक्षा समझौता हुआ है। नाटो स्टाइल की इस डील में किसी एक देश पर हमले को दोनों देशों पर आक्रमण माना जाएगा। पाकिस्तान लंबे समय से सऊदी अरब का प्रमुख सुरक्षा साझेदार के रूप में काम कर रहा है लेकिन यह पहली बार है, जब दोनों देशों के बीच इस तरह का समझौता हुआ है। यह समझौता भारत के लिए झटके की तरह है। हालांकि इसके बावजूद ये संभव है कि सऊदी अरब किसी संघर्ष में पाकिस्तान को सीधे सैन्य मदद देने से बचे क्योंकि ऐसा फैसला मोहम्मद बिन सलमान के लिए आसान नहीं होगा।
इजरायली वेबसाइट यरूशलम पोस्ट ने इजरायल के शोधकर्ता योएल गुजांस्की का एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रक्षा समझौते का विश्लेषण किया है। लेख में गुजांस्की कहते हैं कि पाक-सऊदी समझौते की कुछ सीमाए हैं। खासतौर से इसे इजरायल या भारत के खिलाफ शत्रुतापूर्ण डील की तरह नहीं देखा जाना चाहिए।
भारत विरोध से बचता है सऊदीगुजांस्की कहते हैं, 'भारत के साथ पाकिस्तान के संघर्षों, जैसे- 1965, 1971 और 1999 में सऊदी अरब ने इस्लामाबाद की वित्तीय और कूटनीतिक सहायता की। किसी भी मौके पर सऊदी ने भारत के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई नहीं की। सऊदी ने कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान के साथ बहुत खुलकर खड़े होने से परहेज किया है। यह कहना आसान नहीं है कि भविष्य में सऊदी की ओर से भारत के खिलाफ पाकिस्तैान को सैन्य मदद की जाएगी।
सऊदी और पाकिस्तान के समझौते का प्राथमिक महत्व संयुक्त सैन्य कार्रवाई के प्रति ठोस प्रतिबद्धता के बजाय राजनीतिक संकेत में निहित है। दोहा पर इजरायल के हमले के बाद हस्ताक्षरित इस समझौते का समय इसके रणनीतिक इरादे को रेखांकित करता है। हालांकि सऊदी अधिकारियों ने जोर देकर कहा है कि यह समझौता वर्षों की चर्चाओं का परिणाम है, नै कि हाल की घटनाओं का सीधा जवाब।
भारत के लिए चुनौतीगुजांस्की का मानना है कि भारत के लिएृ सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता रणनीतिक और प्रतीकात्मक चुनौती पेश करता है। खासतौर से समझौते का सामूहिक रक्षा खंड भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय कार्रवाई को सऊदी अरब के खिलाफ आक्रामकता के रूप में पेश कर सकता है। इससे भारत की पकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी।
भारत और सऊदी अरब के संबंध हालिया वर्षों में लगातार बेहतर हुए हैं। खासतौर से 2016 के बाद से दोनो देश करीब आए हैं, जब रियाद ने पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया। साल 2024-25 में भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार 41.88 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गय है।
भारत फिलहाल सऊदी का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यह पाकिस्तान के सऊदी अरब से ज्यादा है। यह समझौता निश्चित रूप से भारत की अरब कूटनीति के लिए प्रतीकात्मक झटका है। भारत के लिए झटके के बावजूद यह कहना जल्दीबादी होगी कि सऊदी की और से सीधेतौर पर पाकिस्तान को सैन्य मदद दी जाएगी।
इजरायली वेबसाइट यरूशलम पोस्ट ने इजरायल के शोधकर्ता योएल गुजांस्की का एक लेख प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुए रक्षा समझौते का विश्लेषण किया है। लेख में गुजांस्की कहते हैं कि पाक-सऊदी समझौते की कुछ सीमाए हैं। खासतौर से इसे इजरायल या भारत के खिलाफ शत्रुतापूर्ण डील की तरह नहीं देखा जाना चाहिए।
भारत विरोध से बचता है सऊदीगुजांस्की कहते हैं, 'भारत के साथ पाकिस्तान के संघर्षों, जैसे- 1965, 1971 और 1999 में सऊदी अरब ने इस्लामाबाद की वित्तीय और कूटनीतिक सहायता की। किसी भी मौके पर सऊदी ने भारत के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई नहीं की। सऊदी ने कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान के साथ बहुत खुलकर खड़े होने से परहेज किया है। यह कहना आसान नहीं है कि भविष्य में सऊदी की ओर से भारत के खिलाफ पाकिस्तैान को सैन्य मदद की जाएगी।
सऊदी और पाकिस्तान के समझौते का प्राथमिक महत्व संयुक्त सैन्य कार्रवाई के प्रति ठोस प्रतिबद्धता के बजाय राजनीतिक संकेत में निहित है। दोहा पर इजरायल के हमले के बाद हस्ताक्षरित इस समझौते का समय इसके रणनीतिक इरादे को रेखांकित करता है। हालांकि सऊदी अधिकारियों ने जोर देकर कहा है कि यह समझौता वर्षों की चर्चाओं का परिणाम है, नै कि हाल की घटनाओं का सीधा जवाब।
भारत के लिए चुनौतीगुजांस्की का मानना है कि भारत के लिएृ सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता रणनीतिक और प्रतीकात्मक चुनौती पेश करता है। खासतौर से समझौते का सामूहिक रक्षा खंड भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय कार्रवाई को सऊदी अरब के खिलाफ आक्रामकता के रूप में पेश कर सकता है। इससे भारत की पकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की स्वतंत्रता सीमित हो जाएगी।
भारत और सऊदी अरब के संबंध हालिया वर्षों में लगातार बेहतर हुए हैं। खासतौर से 2016 के बाद से दोनो देश करीब आए हैं, जब रियाद ने पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान किया। साल 2024-25 में भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय व्यापार 41.88 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गय है।
भारत फिलहाल सऊदी का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। यह पाकिस्तान के सऊदी अरब से ज्यादा है। यह समझौता निश्चित रूप से भारत की अरब कूटनीति के लिए प्रतीकात्मक झटका है। भारत के लिए झटके के बावजूद यह कहना जल्दीबादी होगी कि सऊदी की और से सीधेतौर पर पाकिस्तान को सैन्य मदद दी जाएगी।
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