नई दिल्ली: डूसू चुनाव के मुख्य चुनाव अधिकारी ने विशवविद्यालय चुनाव के मद्देनजर बड़ा फैसला लिया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन (डूसू) के चुनाव के लिए सभी कॉलेजों में 'वॉल ऑफ डेमोक्रेसी' तय की जाएगी यानी ऐसी जगह जहां सभी चुनाव प्रत्याशी अपने पर्चे लगाकर प्रचार कर सकें। इसके अलावा अगर कहीं पोस्टर्स लगाए गए, तो चुनाव प्रत्याशी को जुर्माने, निलंबन या निष्कासन और उम्मीदवारी रद्द करने जैसे दंड झेलने पड़ सकते हैं। डूसू चुनाव मिड सितंबर में होने की उम्मीद है।
छात्र प्रतिनिधियों ने की मांग
डूसू चुनाव के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रो. राज किशोर शर्मा ने बताया कि हमसे स्टूडेंट्स प्रतिनिधियों ने मांग की है कि चुनाव के लिए 'वॉल ऑफ डेमोक्रसी' सभी कॉलेजों में तय की जाए। डूसू और कॉलेजों के चुनाव के लिए अलग-अलग जगह होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम उचित जगह देने के लिए सभी कॉलेजों से कहेंगे। हालांकि, जगह ज्यादा भी नहीं रखी जाएगी क्योंकि यह भी एक तरह से डिफेसमेंट होगा। प्रो. शर्मा ने बताया कि डिफेसमेंट ना हो, इस पर हमने स्टूडेंट्स के प्रतिनिधियों से भी बातचीत की है। पिछले साल हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए स्टूडेंट्स संवेदनशील हुए हैं। अब तक हमें इससे जुड़ी कोई शिकायत नहीं मिली है।
कोर्ट ने गिनती पर लगा दी थी रोक
2024 में 52 कॉलेज में डूसू चुनाव के दौरान हुई गंदगी और पोस्टर्स और पेंट से पब्लिक प्रॉपर्टी खराब करने की शिकायतों पर हाई कोर्ट ने 27 सितंबर 2024 को हुए चुनाव की वोटों की गिनती पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने प्रत्याशियों को पहले सफाई करने को कहा था। इसके बाद चेतावनी देकर दो महीने बाद डूसू चुनाव का रिजल्ट 25 नवंबर को जारी किया गया था।
ये हैं नियम, टूटें तो होगा ऐक्शन
लिंगदोह कमिटी का हो पालन
मुख्य चुनाव अधिकारी और प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने मौरिस नगर के थाना प्रभारी के साथ मिलकर डीयू के प्रॉक्टर कार्यालय में डूसू पदाधिकारियों और स्टूडेंट प्रतिनिधियों के साथ बैठक बुलाई थी। स्टूडेंट्स को बताया गया कि उल्लंघन के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी।
क्यों नियमों पर नहीं होता अमल ?
इस साल डूसू चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रचार के लिए जगह-जगह पोस्टर चिपकेंगे, रैलियां होगी, ढोल बजेंगे या गाड़ियों का काफिला निकलेगा या नहीं? प्रत्याशियों का तर्क है कि दिल्ली में फैले कई कॉलेजों के करीब डेढ़ लाख वोटर्स तक पहुंचना आसान नही है। इतने ज्यादा स्टूडेंट्स तक पहुंचने के लिए प्रिंटेड पर्चे, कारे और रैलियां जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की लिंगदोह कमिटी ने 2006 में गाइडलाइंस दी थी और चुनावी खर्च 5 हजार रुपये तय किया था। मगर डीयू चुनाव के लिए यह खर्च काफी कम है। साथ ही, हर कॉलेज में 'वॉल ऑफ डेमोक्रेसी' नहीं है, जहां है भी तो बहुत छोटा स्पेस है। यह उस कॉलेज के चुनाव के पोस्टर्स से ही भर जाती है।
छात्र प्रतिनिधियों ने की मांग
डूसू चुनाव के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रो. राज किशोर शर्मा ने बताया कि हमसे स्टूडेंट्स प्रतिनिधियों ने मांग की है कि चुनाव के लिए 'वॉल ऑफ डेमोक्रसी' सभी कॉलेजों में तय की जाए। डूसू और कॉलेजों के चुनाव के लिए अलग-अलग जगह होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हम उचित जगह देने के लिए सभी कॉलेजों से कहेंगे। हालांकि, जगह ज्यादा भी नहीं रखी जाएगी क्योंकि यह भी एक तरह से डिफेसमेंट होगा। प्रो. शर्मा ने बताया कि डिफेसमेंट ना हो, इस पर हमने स्टूडेंट्स के प्रतिनिधियों से भी बातचीत की है। पिछले साल हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए स्टूडेंट्स संवेदनशील हुए हैं। अब तक हमें इससे जुड़ी कोई शिकायत नहीं मिली है।
कोर्ट ने गिनती पर लगा दी थी रोक
2024 में 52 कॉलेज में डूसू चुनाव के दौरान हुई गंदगी और पोस्टर्स और पेंट से पब्लिक प्रॉपर्टी खराब करने की शिकायतों पर हाई कोर्ट ने 27 सितंबर 2024 को हुए चुनाव की वोटों की गिनती पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने प्रत्याशियों को पहले सफाई करने को कहा था। इसके बाद चेतावनी देकर दो महीने बाद डूसू चुनाव का रिजल्ट 25 नवंबर को जारी किया गया था।
ये हैं नियम, टूटें तो होगा ऐक्शन
- कॉलेज/सार्वजनिक/निजी संपत्ति पर पोस्टर लगाना या क्षति पहुंचाना गंभीर अपराध माना जाएगा।
- जिस स्टूडेंट के नाम का पब्लिक प्लेस पर कोई पोस्टर नजर आया, उसे आदेश के बाद तीन दिन के अंदर इसे हटाना होगा।
- कॉलेज/विभाग/संस्थान/केंद्र में चुनावों के दौरान पोस्टर पर नाम की गलत वर्तनी (जैसे अतिरिक्त अक्षर) को भी डिफेसमेंट माना जाएगा।
- अगर स्टूडेंट कहता है कि पोस्टर किसी और ने उसके नाम से लगाया है, तो उसे पुलिस में शिकायत करनी होगी और कॉपी अपने कॉलेज या यूनिवर्सिटी को देनी होगी।
लिंगदोह कमिटी का हो पालन
मुख्य चुनाव अधिकारी और प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने मौरिस नगर के थाना प्रभारी के साथ मिलकर डीयू के प्रॉक्टर कार्यालय में डूसू पदाधिकारियों और स्टूडेंट प्रतिनिधियों के साथ बैठक बुलाई थी। स्टूडेंट्स को बताया गया कि उल्लंघन के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाएगी।
क्यों नियमों पर नहीं होता अमल ?
इस साल डूसू चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रचार के लिए जगह-जगह पोस्टर चिपकेंगे, रैलियां होगी, ढोल बजेंगे या गाड़ियों का काफिला निकलेगा या नहीं? प्रत्याशियों का तर्क है कि दिल्ली में फैले कई कॉलेजों के करीब डेढ़ लाख वोटर्स तक पहुंचना आसान नही है। इतने ज्यादा स्टूडेंट्स तक पहुंचने के लिए प्रिंटेड पर्चे, कारे और रैलियां जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की लिंगदोह कमिटी ने 2006 में गाइडलाइंस दी थी और चुनावी खर्च 5 हजार रुपये तय किया था। मगर डीयू चुनाव के लिए यह खर्च काफी कम है। साथ ही, हर कॉलेज में 'वॉल ऑफ डेमोक्रेसी' नहीं है, जहां है भी तो बहुत छोटा स्पेस है। यह उस कॉलेज के चुनाव के पोस्टर्स से ही भर जाती है।
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