बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आखिरकार महागठबंधन ने अपना सीएम चेहरा घोषित कर दिया है। तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। इस फैसले पर पहुंचने के लिए काफी लंबी बातचीत और जद्दोजहद चली। आखिरकार, महागठबंधन के घटक दलों ने तेजस्वी के नाम पर मुहर लगाकर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की है। यह फैसला पटना में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लिया गया, जहां अलायंस के सभी प्रमुख चेहरे मौजूद थे। हालांकि, कांग्रेस और आरजेडी के नेताओं पर सबसे ज्यादा फोकस था, क्योंकि सीट शेयरिंग और सीएम उम्मीदवार का असली पेंच इन्हीं दोनों दलों के बीच फंसा था। इस देरी से महागठबंधन में असमंजस बढ़ रहा था। कुछ दिनों पहले मुकेश सहनी ने कहा था कि महागठबंधन थोड़ा अस्वस्थ है, जिससे यही संकेत मिला कि बात नहीं बन पा रही थी।
कांग्रेस की तरफ से कभी भी तेजस्वी के नाम का सीधा विरोध नहीं किया गया, बस सहमति नहीं जताई जा रही थी। बिहार में लोग पहले से ही मान रहे थे कि तेजस्वी ही चेहरा होंगे और इसका ऐलान सिर्फ एक औपचारिकता है। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि गठबंधन के सभी साथी किसी दूसरे ऐसे नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे थे। इस घोषणा में देरी की एक बड़ी वजह यह भी थी कि कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपना दावा पेश करना चाहती थी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन जीत सिर्फ 19 पर मिली थी। इसलिए, पार्टी इस बार ज्यादा और जीतने की संभावना वाली सीटें चाहती थी। इस बातचीत में काफी वक्त लग गया और अगर अब तेजस्वी के नाम पर एकता प्रदर्शित नहीं की जाती, तो शायद महागठबंधन के लिए देर हो जाती। हालांकि, कुछ सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' यानी आपसी सहमति से चुनाव लड़ने की संभावना अब भी बनी हुई है।
सीट बंटवारे की घोषणा पहले करके एनडीए ने जो बढ़त हासिल की थी, महागठबंधन ने अब उसे कवर करने का प्रयास किया है। एनडीए ने इस बार किसी को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाया है। यह दो दशक में पहला ऐसा चुनाव है जब नीतीश कुमार गठबंधन का नेतृत्व तो कर रहे हैं, पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हैं। महागठबंधन ने अपना नेता घोषित कर एनडीए पर दबाव बढ़ा दिया है। बिहार का यह चुनाव कई मायनों में अलग है। नीतीश सरकार की घोषणाओं के जवाब में तेजस्वी ने भी वादों की झड़ी लगा दी है। 28 अक्टूबर को आने वाले महागठबंधन के घोषणापत्र में ऐसे कई वादे देखने को मिल सकते हैं।
महागठबंधन के नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकजुटता दिखाने की पूरी कोशिश की। हालांकि, कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट बंटवारे को लेकर थोड़ी खींचतान चल रही थी। कांग्रेस ज्यादा सीटें चाहती थी क्योंकि पिछले चुनाव में उन्हें ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन जीत कम मिली थी। इस वजह से थोड़ी देर हो रही थी। मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने भी इस बात का इशारा किया था कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लेकिन, आखिरकार तेजस्वी यादव के नाम पर सभी दल सहमत हो गए। यह फैसला महागठबंधन के लिए एक बड़ी जीत है क्योंकि इससे उनकी एकजुटता का संदेश पूरे बिहार में जाएगा।
एनडीए ने पहले ही अपने पत्ते खोल दिए थे और सीट बंटवारे की घोषणा कर दी थी। लेकिन, उन्होंने किसी एक चेहरे को सीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया है। यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि पिछले दो दशकों से नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा रहे हैं। महागठबंधन ने तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार बनाकर एनडीए पर दबाव बनाने की कोशिश की है। यह चुनाव बिहार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें वादों का दौर भी जारी है। नीतीश सरकार ने कई घोषणाएं की हैं, तो वहीं तेजस्वी यादव ने भी जनता से कई वादे किए हैं। महागठबंधन का घोषणापत्र 28 अक्टूबर को आने वाला है, जिसमें कई बड़े वादे होने की उम्मीद है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस वादे पर भरोसा करती है और बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है।
कांग्रेस की तरफ से कभी भी तेजस्वी के नाम का सीधा विरोध नहीं किया गया, बस सहमति नहीं जताई जा रही थी। बिहार में लोग पहले से ही मान रहे थे कि तेजस्वी ही चेहरा होंगे और इसका ऐलान सिर्फ एक औपचारिकता है। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि गठबंधन के सभी साथी किसी दूसरे ऐसे नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे थे। इस घोषणा में देरी की एक बड़ी वजह यह भी थी कि कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपना दावा पेश करना चाहती थी। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं, लेकिन जीत सिर्फ 19 पर मिली थी। इसलिए, पार्टी इस बार ज्यादा और जीतने की संभावना वाली सीटें चाहती थी। इस बातचीत में काफी वक्त लग गया और अगर अब तेजस्वी के नाम पर एकता प्रदर्शित नहीं की जाती, तो शायद महागठबंधन के लिए देर हो जाती। हालांकि, कुछ सीटों पर 'फ्रेंडली फाइट' यानी आपसी सहमति से चुनाव लड़ने की संभावना अब भी बनी हुई है।
सीट बंटवारे की घोषणा पहले करके एनडीए ने जो बढ़त हासिल की थी, महागठबंधन ने अब उसे कवर करने का प्रयास किया है। एनडीए ने इस बार किसी को सीएम उम्मीदवार नहीं बनाया है। यह दो दशक में पहला ऐसा चुनाव है जब नीतीश कुमार गठबंधन का नेतृत्व तो कर रहे हैं, पर मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं हैं। महागठबंधन ने अपना नेता घोषित कर एनडीए पर दबाव बढ़ा दिया है। बिहार का यह चुनाव कई मायनों में अलग है। नीतीश सरकार की घोषणाओं के जवाब में तेजस्वी ने भी वादों की झड़ी लगा दी है। 28 अक्टूबर को आने वाले महागठबंधन के घोषणापत्र में ऐसे कई वादे देखने को मिल सकते हैं।
महागठबंधन के नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एकजुटता दिखाने की पूरी कोशिश की। हालांकि, कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट बंटवारे को लेकर थोड़ी खींचतान चल रही थी। कांग्रेस ज्यादा सीटें चाहती थी क्योंकि पिछले चुनाव में उन्हें ज्यादा सीटें मिली थीं लेकिन जीत कम मिली थी। इस वजह से थोड़ी देर हो रही थी। मुकेश सहनी जैसे नेताओं ने भी इस बात का इशारा किया था कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। लेकिन, आखिरकार तेजस्वी यादव के नाम पर सभी दल सहमत हो गए। यह फैसला महागठबंधन के लिए एक बड़ी जीत है क्योंकि इससे उनकी एकजुटता का संदेश पूरे बिहार में जाएगा।
एनडीए ने पहले ही अपने पत्ते खोल दिए थे और सीट बंटवारे की घोषणा कर दी थी। लेकिन, उन्होंने किसी एक चेहरे को सीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया है। यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि पिछले दो दशकों से नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा रहे हैं। महागठबंधन ने तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार बनाकर एनडीए पर दबाव बनाने की कोशिश की है। यह चुनाव बिहार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें वादों का दौर भी जारी है। नीतीश सरकार ने कई घोषणाएं की हैं, तो वहीं तेजस्वी यादव ने भी जनता से कई वादे किए हैं। महागठबंधन का घोषणापत्र 28 अक्टूबर को आने वाला है, जिसमें कई बड़े वादे होने की उम्मीद है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस वादे पर भरोसा करती है और बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है।
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