अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने 4-दिवसीय स्कॉटलैंड दौरे के बाद 30 जुलाई 2025 को अमेरिका लौटते वक्त एयर फ़ोर्स वन में पत्रकारों से बातचीत की। इस चर्चा के दौरान उन्होंने टैरिफ से जुड़े मुद्दों पर विशेष रूप से भारत का जिक्र किया। ट्रंप ने कहा, “भारत हमारा अच्छा सहयोगी रहा है, लेकिन वह अमेरिका के मुकाबले काफी ज्यादा टैरिफ वसूलता है—यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है।” जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत पर 20% से 25% तक टैरिफ लगाना संभव है, तो उन्होंने जवाब दिया, “मुझे ऐसा लगता है।” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि फिलहाल कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर गहन बातचीत चल रही है और 1 अगस्त की डेडलाइन निकट आ रही है। ट्रंप प्रशासन का उद्देश्य है कि Reciprocal Tariffs यानी “पारस्परिक शुल्क” नीति के तहत सभी देशों पर एक जैसे टैरिफ लागू किए जाएं। उनका आरोप है कि भारत जैसे देश अमेरिकी सामानों पर अधिक शुल्क लगाते हैं, जबकि अमेरिका ने अपने बाज़ार उनके लिए खुला रखा है। 23 जुलाई को भी ट्रंप ने दोहराया था कि अमेरिका अब किसी भी देश के लिए आयात शुल्क 15% से कम नहीं रखेगा।
वार्ता की कोशिशें जारी, लेकिन समाधान दूर
1 अगस्त की समयसीमा के पहले भारत इस व्यापार विवाद को सुलझाने की कोशिश में जुटा हुआ है। राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में भारतीय टीम ने जुलाई के महीने में वाशिंगटन में पांच राउंड की बातचीत की, जो चार दिनों तक चली। इन चर्चाओं में मुख्य विषय कृषि, ऑटोमोबाइल और डिजिटल ट्रेड जैसे मुद्दे रहे। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद किसी ठोस नतीजे पर सहमति नहीं बन सकी। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी वार्ताकारों ने संकेत दिए हैं कि अगला दौर अब अगस्त के बाद ही संभावित है, यानी डेडलाइन के बीत जाने के बाद।
ट्रंप की चेतावनी के पीछे की सोच
ट्रंप के अनुसार, यदि अमेरिका को टैरिफ नीति में निष्पक्षता नहीं मिलती, तो उसे कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं। उनका मानना है कि जब तक भारत जैसे देश टैरिफ दरों को अमेरिकी स्तर पर लाने के लिए तैयार नहीं होते, उन्हें “अनुचित व्यापार साझेदार” (Unfair Trading Partner) के रूप में देखा जाएगा।
भारत-अमेरिका व्यापार तनाव के प्रभाव
हालांकि भारत और अमेरिका के रिश्ते रणनीतिक दृष्टि से सशक्त हैं—जैसे रक्षा सहयोग, क्वाड समूह और इंडो-पैसिफिक रणनीति—लेकिन व्यापार के मोर्चे पर स्थिति काफी अस्थिर बनी हुई है। यदि ट्रंप अपने इरादों पर अमल करते हैं, तो इसके कई संभावित असर हो सकते हैं:
- भारतीय निर्यातकों पर बढ़ेगा आर्थिक दबाव: खासकर स्टील, एल्यूमिनियम और वस्त्र उद्योग सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं।
- IT और डेटा नीति पर मतभेद गहराएंगे: डिजिटल क्षेत्र में पहले से मौजूद असहमति और बढ़ सकती है।
- रणनीतिक समझौतों पर असर: रक्षा, तकनीक और क्षेत्रीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में विश्वास की दरार आ सकती है।
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