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बिहार चुनाव: लालगंज सीट पर बाहुबल, जातीय समीकरण और विकास का टकराव

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Patna, 12 अक्टूबर . बिहार के वैशाली जिले की लालगंज विधानसभा सीट प्रदेश की बदलती सामाजिक-Political तस्वीर का प्रतीक है. शहरीकरण और बढ़ती व्यापारिक गतिविधियों के कारण लालगंज राज्य के सबसे उभरते क्षेत्रों में गिना जाने लगा है. ऐतिहासिक रूप से भी इस क्षेत्र का विशेष महत्व रहा है. ब्रिटिश शासनकाल में लालगंज प्रशासनिक दृष्टि से एक प्रमुख इलाका था और 1969 में इसे नगर परिषद (नगर बोर्ड) का दर्जा मिला.

लालगंज की भौगोलिक स्थिति इसे आर्थिक रूप से संपन्न बनाती है. गंडक नदी के किनारे बसे इस क्षेत्र में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था है, जिससे धान, गेहूं, मक्का, दालें, सब्जियां और तंबाकू जैसी फसलें खूब होती हैं. हाल के वर्षों में किसानों ने केला, लीची, आम की बागवानी और डेयरी फार्मिंग की ओर भी रुख किया है. यहां से जिला मुख्यालय हाजीपुर 20 किमी, मुजफ्फरपुर 37 किमी और Patna मात्र 39 किमी की दूरी पर है.

लालगंज की पहचान सिर्फ विकास या कृषि से नहीं, बल्कि बाहुबल और अपराध से भी जुड़ी रही है. इस क्षेत्र की राजनीति लंबे समय तक बाहुबलियों के प्रभाव में रही, जिनमें सबसे चर्चित नाम है विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला. वे तीन बार विधायक रह चुके हैं और कुख्यात अपराधी छोटन शुक्ला के छोटे भाई हैं. तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में निचली अदालत ने मुन्ना शुक्ला को आजीवन कारावास की सजा दी, लेकिन Patna हाईकोर्ट से बरी होने के बाद वे राजनीति में लौटे और 2000 में निर्दलीय, फरवरी 2005 में एलजेपी और अक्टूबर 2005 में जेडीयू के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते. उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला ने 2010 में जेडीयू से जीत दर्ज की. हालांकि, बाद में Supreme court ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए मुन्ना शुक्ला को फिर से आजीवन कारावास की सजा सुना दी.

साल 1951 में स्थापित लालगंज विधानसभा सीट हाजीपुर Lok Sabha क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. शुरुआती वर्षों में इसे लालगंज उत्तर और दक्षिण के रूप में विभाजित किया गया था. कांग्रेस ने शुरुआती दौर में यहां मजबूत पकड़ बनाई थी. लालगंज दक्षिण से तीन और लालगंज उत्तर से एक निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए. 1967 में परिसीमन के बाद इसे एकीकृत सीट बना दिया गया.

तब से अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस ने चार बार, जबकि जनता दल, जेडीयू और एलजेपी ने दो-दो बार जीत दर्ज की है. इसके अलावा लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी, एक निर्दलीय और भाजपा ने भी एक-एक बार जीत हासिल की. 2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार भाजपा ने यह सीट जीती. संजय कुमार सिंह ने बहुकोणीय मुकाबले में जीत दर्ज की थी. उस समय मुन्ना शुक्ला को जेडीयू से टिकट नहीं मिला था और उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था.

जातीय समीकरण की बात करें तो लालगंज मुख्यतः ग्रामीण इलाका है. 2025 का विधानसभा चुनाव लालगंज के लिए निर्णायक हो सकता है. भाजपा अपनी पहली जीत को दोहराने की कोशिश में होगी, जबकि आरजेडी और जेडीयू दोनों इस सीट को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति बना रहे हैं. बाहुबल और जातीय समीकरण के साथ-साथ अब विकास भी यहां का अहम चुनावी मुद्दा बन चुका है.

2024 में चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, यहां की जनसंख्या 573916 है, जिसमें 302571 मेल और 271345 फीमेल हैं. वहीं 350651 कुल वोटर हैं, जिसमें से 183303 मेल, 167330 फीमेल और 18 थर्ड जेंडर हैं.

डीकेपी/

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