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इलेक्ट्रिक झालरों के चलते मिट्टी के दीयों की बिक्री कम, कारीगरों की बढ़ी चिंता

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उधम सिंह नगर, 20 अक्टूबर . आज दीपावली का पर्व देशभर में हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जा रहा है. इस अवसर पर मिट्टी के कारीगर अपनी मेहनत और कला से तैयार किए गए दीयों, करवे, हठली, गुल्लक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों को बाजार में बेचने में लगे हुए हैं. इन कारीगरों के लिए दीपावली का त्योहार केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि उनके पूरे साल की कमाई का सबसे बड़ा अवसर होता है.

काशीपुर में स्टेडियम के पास दक्ष प्रजापति चौक के आस-पास बसे ये गरीब मिट्टी के कारीगर वर्षों से अपनी कला और परिश्रम के दम पर दीपावली के दौरान घर-घर रोशनी पहुंचाते आए हैं. मिट्टी के कारीगर दीपावली से लगभग दो-ढाई महीने पहले ही अपने उत्पादों की तैयारी शुरू कर देते हैं. छोटे-छोटे चिराग, बड़े चिराग, दीए-पुरवे और अन्य सजावटी वस्तुएं महीनों की मेहनत से तैयार की जाती हैं.

महिला कारीगर माया बताती हैं कि पिछले कुछ सालों से काम थोड़ा हल्का हो गया है. इस बार तो बारिश के कारण भी नुकसान हुआ. लोग अब केवल शगुन के तौर पर ही मिट्टी के दीयों को खरीदते हैं और बड़े पैमाने पर उनकी बिक्री नहीं होती.

बाजार में इलेक्ट्रॉनिक और चाइनीज झालरों के आने से इन कारीगरों की परेशानी और बढ़ गई है. अनीता के अनुसार, लोग अब मिट्टी के दीयों की बजाय बिजली के दीयों और झालरों की तरफ जल्दी आकर्षित हो जाते हैं. इससे इन कारीगरों की मेहनत और कला का महत्व कम होता नजर आता है.

तीन महीने की जी-तोड़ मेहनत और दिन-रात की परिश्रम के बाद जब ये कारीगर अपने हाथों से बनाए उत्पाद लेकर बाजार आते हैं और ग्राहक उनकी मेहनत को नजरअंदाज करते हुए इलेक्ट्रॉनिक सामान की ओर रुख करते हैं, तो उनके चेहरे पर मायूसी और चिंता साफ झलकती है.

मिट्टी के कारीगरों के लिए दीपावली केवल त्योहार नहीं, बल्कि उनके परिवार की आशा और जीवन यापन का माध्यम है. उनके लिए यह समय बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी बिक्री से उनका पूरे साल का गुजर-बसर चलता है. ऐसे में मिट्टी कलाकार चाहते हैं कि लोग उनकी मेहनत और कला की कद्र करें और अपने दीपावली के त्योहार में मिट्टी के दीयों और अन्य हस्तशिल्पों को प्राथमिकता दें.

पीआईएम/एबीएम

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