New Delhi, 7 अगस्त . भारत में डेटा ब्रीच की औसत संगठनात्मक लागत 2025 में 22 करोड़ रुपए के नए उच्च स्तर पर पहुंच गई है, जो सालाना आधार पर 13 प्रतिशत की वृद्धि है.
अमेरिकी कंसल्टिंग कंपनी आईबीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ब्रीच की पहचान और रोकथाम का समय घटकर 263 दिन रह गया है, जो 2024 की तुलना में 15 दिन कम है, क्योंकि अधिक संगठनों ने ब्रीच की पहचान करने की अपनी स्पीड में सुधार किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में केवल 37 प्रतिशत संगठनों ने एआई एक्सेस कंट्रोल लागू करने की सूचना दी है. लगभग 60 प्रतिशत संगठनों में एआई गवर्नेंस नीतियां नहीं हैं या वे अभी भी उन्हें विकसित कर रहे हैं.
जिन संगठनों के पास एआई गवर्नेंस नीतियां हैं, उनमें से केवल 34 प्रतिशत ही एआई गवर्नेंस तकनीक का उपयोग करते हैं.
भारत में, डेटा ब्रीच के प्रमुख कारण फिशिंग उसके बाद थर्ड-पार्टी वेंडर और सप्लाई चेन और वल्नरबिलिटी एक्सप्लॉइटेशन थे.
रिपोर्ट में पाया गया कि दुनिया भर में एआई का उपयोग एआई सुरक्षा और शासन से कहीं आगे बढ़ रहा है.
इसमें कहा गया है कि एआई से संबंधित ब्रीच का अनुभव करने वाले संगठनों की संख्या कुल शोधित जनसंख्या की तुलना में कम है, लेकिन एआई एक उच्च-मूल्य वाला लक्ष्य बना हुआ है.
संगठन सुरक्षा और शासन उपायों की तुलना में तत्काल एआई अपनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं.
आईबीएम इंडिया और दक्षिण एशिया के प्रौद्योगिकी उपाध्यक्ष, विश्वनाथ रामास्वामी ने कहा, “भारत में एआई को तेजी से अपनाने से अपार अवसर मिल रहे हैं, लेकिन यह उद्यमों को नए और जटिल साइबर खतरों के प्रति भी उजागर कर रहा है. एक्सेस कंट्रोल और एआई गवर्नेंस टूल्स का अभाव केवल एक तकनीकी चूक नहीं है; यह एक रणनीतिक भेद्यता है. सीआईएसओ को एआई प्रणालियों में विश्वास, पारदर्शिता और शासन को अंतर्निहित करते हुए निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए.”
शैडो एआई, यानी संगठन के आईटी विभाग की निगरानी के बिना एआई टूल्स और एप्लिकेशन का इस्तेमाल, भारत में डेटा ब्रीच के तीन सबसे बड़े कारकों में से एक रहा है, जिससे औसत ब्रीच लागत में 1.79 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है. केवल 42 प्रतिशत संगठनों के पास ही शैडो एआई का पता लगाने की नीतियां हैं.
भारत में रिसर्च सेक्टर को डेटा ब्रीच का सबसे ज्यादा असर झेलना पड़ा, जिसकी औसत लागत 28.9 करोड़ रुपए तक पहुंच गई, इसके बाद परिवहन उद्योग की लागत 28.8 करोड़ रुपए और औद्योगिक क्षेत्र की लागत 26.4 करोड़ रुपए रही.
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एसकेटी/
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