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मनोहर जोशी: हास्य और व्यंग्य के उस्ताद की अनकही कहानी

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New Delhi, 8 अगस्त . मनोहर श्याम जोशी आधुनिक हिन्दी साहित्य के उन चंद रचनाकारों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा से साहित्य, पत्रकारिता और टेलीविजन लेखन के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी है.

उपन्यासकार, व्यंग्यकार, कहानीकार और पत्रकार के रूप में उनकी रचनाएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं. उनकी लेखनी में हिन्दी साहित्य की समृद्ध परंपरा और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलता है.

मनोहर श्याम जोशी ने अपने साहित्यिक योगदान से न केवल हिन्दी साहित्य को नई दिशा दी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श को भी समृद्ध किया. मनोहर श्याम जोशी का जन्म 9 अगस्त, 1933 को राजस्थान के अजमेर में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा का प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. उनकी रचनाओं में संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं का जीवंत चित्रण मिलता है.

मनोहर श्याम जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘दिनमान’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों में संपादक के रूप में कार्य किया.

उनकी पत्रकारिता में भी वही तीक्ष्णता और व्यंग्य देखने को मिलता है, जो उनकी साहित्यिक रचनाओं की विशेषता है. जोशी की साहित्यिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव उनके उपन्यास हैं. उनके उपन्यास ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’ और ‘क्याप’ ने हिन्दी साहित्य में नए कीर्तिमान स्थापित किए.

उनकी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य का ऐसा समन्वय है, जो पाठक को गंभीर विषयों पर हल्के-फुल्के अंदाज में सोचने को मजबूर करता है. मनोहर श्याम जोशी का योगदान केवल साहित्य तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने भारतीय टेलीविजन के स्वर्णिम युग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

दूरदर्शन के लिए उनके द्वारा लिखित धारावाहिक ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’ और ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बनाया. ‘हम लोग’ ने भारतीय मध्यम वर्ग के जीवन, उनकी आकांक्षाओं और चुनौतियों को इतनी सहजता से प्रस्तुत किया कि यह धारावाहिक दर्शकों के दिलों में बस गया.

‘बुनियाद’ ने विभाजन की त्रासदी को संवेदनशीलता के साथ चित्रित किया, जबकि ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ में उन्होंने सामान्य आदमी के सपनों और वास्तविकता के बीच के अंतर को हास्य के माध्यम से उजागर किया.

मनोहर श्याम जोशी की लेखनी की सबसे बड़ी विशेषता थी उनकी भाषा की सहजता और पात्रों का जीवंत चित्रण. वे जटिल सामाजिक मुद्दों को सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत करने में माहिर थे. उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे मानवीय भावनाओं और सामाजिक परिवर्तनों को गहराई से समझने का अवसर प्रदान करती हैं.

30 मार्च 2007 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य और भारतीय टेलीविजन के इतिहास में अमर रहेंगी.

एकेएस/डीएससी

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