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बिहार कांग्रेस का बड़ा दांव, 76 सीटें और 17 कैंडिडेट फाइनल! साथी बोले- 'औकात से ज्यादा मत मांगो',

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आते ही सियासी हलचल तेज हो गई है। महागठबंधन में सबसे पुराने सहयोगी दल कांग्रेस ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं।

दिल्ली में हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद साफ हो गया है कि कांग्रेस ने 76 सीटों पर अपनी दावेदारी तय कर ली है। इतना ही नहीं, मौजूदा 17 विधायकों का टिकट भी लगभग फाइनल कर दिया गया है।

लेकिन इसी बीच महागठबंधन के भीतर से आवाज उठ रही है-“औकात से ज्यादा सीट मत मांगो।” CPI-ML ने साफ संदेश दिया है कि कांग्रेस को अपनी ताकत और पिछली परफॉर्मेंस देखकर ही सीटों की मांग करनी चाहिए। वो अपनी औकात से बाहर आकर सीटें मांग रहे हैं।

दिल्ली बैठक में तय हुई बिहार चुनाव की रणनीति, 76 सीटों पर लड़ने का प्लान!

कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की अहम बैठक 19 सितंबर को दिल्ली में हुई। इसमें पार्टी प्रभारी कृष्णा अल्लावारु, प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम, विधायक दल के नेता शकील अहमद खान और विधान परिषद में दल के नेता मदन मोहन झा मौजूद थे। बैठक की अध्यक्षता अजय माकन ने की।

सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में 76 विधानसभा क्षेत्रों पर विस्तार से चर्चा हुई। इनमें से करीब तीन दर्जन सीटों पर उम्मीदवार लगभग तय माने जा रहे हैं। खास बात यह है कि कांग्रेस ने मौजूदा 17 विधायकों का टिकट काटने से इनकार कर दिया है। यानी इनका दोबारा मैदान में उतरना तय है।

टिकट की फाइल पटना से दिल्ली शिफ्ट

बैठक से पहले पटना में प्रदेश चुनाव समिति की मीटिंग हुई थी, जिसमें आलाकमान को उम्मीदवार तय करने का अधिकार दिया गया। इसके बाद उम्मीदवारों की फाइल पटना से दिल्ली भेज दी गई। दिल्ली की स्क्रीनिंग कमेटी में इस पर अंतिम चर्चा हुई और संभावित प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगने की प्रक्रिया शुरू हो गई।

क्लस्टर मॉडल पर भी चर्चा

कांग्रेस ने इस चुनाव में बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने के लिए क्लस्टर मॉडल पर काम करने का निर्णय लिया है। इस मॉडल में न सिर्फ प्रत्याशी बल्कि उनकी मदद के लिए स्थानीय रणनीति बनाने वाले नेताओं का भी क्लस्टर तैयार होगा। इससे चुनावी तैयारी ज्यादा व्यवस्थित होगी।

CPI-ML की नसीहत: “कम सीट लड़ो, ज्यादा जीतो”

महागठबंधन के सहयोगी दल CPI-ML के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कांग्रेस को कड़ा संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को अपनी ‘औकात’ पहचाननी चाहिए। 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी लेकिन जीत सिर्फ 19 पर मिली। जबकि 2015 में 40 सीटों पर चुनाव लड़कर उसने 27 सीटें जीत ली थीं।

दीपांकर का तर्क है कि कांग्रेस को सीटें कम लड़नी चाहिए लेकिन जीत का प्रतिशत बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा-“कम सीटें लड़कर ज्यादा सीटें जीतना महागठबंधन के हित में है।”

पिछली बार का रिकॉर्ड कांग्रेस के खिलाफ

2020 के चुनाव में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था। 70 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद सिर्फ 19 जीत हासिल हुईं। बाद में दो विधायक दल बदलकर एनडीए में चले गए। नतीजतन, फिलहाल विधानसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 17 विधायक हैं। यही कारण है कि सहयोगी दल कांग्रेस की सीट मांग को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

प्रियंका गांधी की एंट्री से बढ़ेगी गर्मी

कांग्रेस ने चुनावी रणनीति में प्रियंका गांधी को भी शामिल करने का फैसला किया है। 26 सितंबर को प्रियंका गांधी की बिहार यात्रा प्रस्तावित है। वे सीमांचल और उत्तर बिहार में चुनावी रैली करेंगी। माना जा रहा है कि प्रियंका की पहली बड़ी सभा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए उत्साह बढ़ाने वाली होगी। उनकी तैयारियों और मॉनिटरिंग के लिए एक विशेष समिति गठित की जाएगी।

कांग्रेस का बड़ा दांव और आगे की राह

कांग्रेस इस बार किसी भी हालत में बिहार में अपनी जमीन मजबूत करना चाहती है। 76 सीटों की दावेदारी और 17 कैंडिडेट का फाइनल होना इसका सबूत है। लेकिन सवाल यह है कि महागठबंधन के बाकी साथी, खासकर CPI-ML और RJD, इस पर क्या रुख अपनाएंगे?

स्पष्ट है कि कांग्रेस की रणनीति अभी शुरुआत है। असली तस्वीर सीट बंटवारे के समय सामने आएगी, जब हर दल अपनी ताकत का दावा करेगा।

बिहार चुनाव 2025 में कांग्रेस ने बड़ा दांव चला है। लेकिन राजनीति सिर्फ दांव पर नहीं, तालमेल और आंकड़ों पर भी टिकी होती है। कांग्रेस की 76 सीटों की मांग और CPI-ML की ‘औकात’ वाली नसीहत इस बात की ओर इशारा करती है कि महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारा आसान नहीं होने वाला। अब सबकी नजरें आलाकमान पर हैं, जो तय करेगा कि कांग्रेस कितनी सीटों पर लड़ेगी और गठबंधन का गणित आखिर किस तरफ झुकेगा।

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