भारत में शादियां बड़ी धूमधाम से होती है। इन शादियों में ढेर सारी रस्में भी होती है। हर धर्म और जाति की अपनी अलग रस्म और रिवाज होते हैं। इन सभी में एक रस्म सबसे ज्यादा कॉमन होती है। और वह रस्म है घुड़चढ़ी। यानी घोड़ी पर चढ़ना।
आजकल दूल्हे अपनी शादी में कई अलग-अलग तरीकों से एंट्री करते हैं। लेकिन इन सब के बावजूद घोड़ी पर चढ़कर बारात लेकर आने की बात ही सबसे निराली होती है। यह परंपरा कई सदियों पुरानी है। आपने भी कई दूल्हों को घोड़ी चढ़ते देखा होगा। आप में से कई तो खुद भी घोड़ी पर चढ़े होंगे। लेकिन क्या आप दूल्हे के घोड़ी चढ़ने की वजह जानते हैं?
इस कारण घोड़ी चढ़ता है दूल्हाशादी के पहले अधिकतर माता-पिता हमारी देखभाल करते हैं। उनके सिर पर ढेर सारी जिम्मेदारियां होती है। हम टेंशन फ्री रहते हैं। बेफिक्र होकर अपनी लाइफ जीते हैं। लेकिन शादी के बाद हमारा खुद का एक परिवार बनता है। ऐसे में हमारी कई जिम्मेदारियां भी बन जाती है। शादीशुदा लाइफ में कई अलग–अलग परिस्थितियां पैदा होती है। एक अच्छा पति वही होता है जो अपने सामने आने वाली हर मुसीबत और जिम्मेदारी को अच्छे से समझे और उसका निपटारा करें।
दूल्हा जब घोड़ी के ऊपर चढ़ता है तो यह उसका एक तरह से टेस्ट होता है। माना जाता है कि यदि दूल्हा घोड़ी के ऊपर अच्छे से चढ़ गया तो वह सारी जिम्मेदारियां निभा लेगा। वह भविष्य में अपनी बीवी और बच्चों का अच्छे से ध्यान रख पाएगा। जिस तरह वह अपनी बारात में घोड़ी को नियंत्रित करेगा वैसे ही अपनी शादीशुदा लाइफ में जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाएगा।
घोड़ी पर ही क्यों चढ़ता है दूल्हा? घोड़े पर क्यों नहीं?अब आपने एक बात और गौर की होगी कि दूल्हा हमेशा शादी में घोड़ी के ऊपर ही चढ़ता है। आपने कभी किसी दूल्हे को घोड़े के ऊपर चढ़ते हुए नहीं देखा होगा। घोड़ी के ऊपर दूल्हे के चढ़ने की भी एक खास वजह है। दरअसल घोड़ी घोड़े की तुलना में ज्यादा चंचल होती है। इसलिए उसे नियंत्रित करना और उसकी सवारी करना ज्यादा कठिन होता है। घोड़ी पर सवारी करने का यह मतलब होता है कि दूल्हा अब अपना बचकाना व्यवहार छोड़ चुका है और सीरियस होकर अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभा रहा है। वह अपनी शादीशुदा लाइफ में आने वाली जिम्मेदारियों को कंधे पर उठाने के लिए रेडी है।
घोड़ी चढ़ने का धार्मिकदूल्हे का घोड़ी के ऊपर चढ़ने का धार्मिक महत्व भी है। भगवान श्रीराम ने भी अश्वमेध यज्ञ के लिए एक घोड़े का इस्तेमाल किया था। घोड़े पर बैठने का अर्थ होता है कि हम चुनौतियों को स्वीकार कर रहे हैं। रामायण और महाभारत में कई बार इस बात का जिक्र पढ़ने को मिलता है कि कैसे बड़े-बड़े युद्ध में महासूरवीर लोग घोड़े का इस्तेमाल करते थे। घोड़े पर नियंत्रण करने की तुलना इंद्रियों पर नियंत्रण करने के समान भी मानी जाती है।
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