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महाराष्ट्र के नागपुर में पूरे उत्साह से मनाया जाएगा मारबत उत्सव, 128 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा

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नागपुर, 21 अगस्त (हि.स.) । महाराष्ट्र के नागपुर में सावन की अमावस्या के दूसरे दिन मनाया जाने वाला मारबत उत्सव एक बार फिर पूरे उत्साह से मनाया जाएगा है। इसकी तैयारियां जाेराें पर हैं। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी लोगों में मारबत उत्सव काे लेकर विशेष जोश देखा जा रहा है।यह उत्सव शनिवार काे मनाया जाएगा।

शालिवाहन शक पंचांग के अनुसार सावन की अमावस्या के दूसरे दिन मनाए जाने वाला इस मारबत उत्सव की परंपरा नागपुर में करीब 128 वर्ष से चली आ रही है। वर्षाें पुरानी इस परंपरा में काली और पीली मारबत तथा बडग्या नामक पुतलों की शहर में यात्रा निकालकर उनका दहन किया जाता है। माना जाता है कि ये पुतले समाज की बुराइयों, बीमारियों और कुरीतियों का प्रतीक होते हैं। वरिष्ठ पत्रकार और विदर्भ के इतिहास के शोधकर्ता अनिल वासनिक के अनुसार यह उत्सव पोला पर्व से जुड़ा है, जो कृषि संस्कृति और बैलों के सम्मान का प्रतीक है। नागपुर में पोला के अगले दिन मारबत निकालने की परंपरा है।

मारबत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

काली मारबत की शुरुआत वर्ष 1881 में हुई थी। इसका संबंध भोसले राजघराने की बकाबाई नामक महिला के अंग्रेजों से मिल जाने की घटना से जोड़ा जाता है।

पीली मारबत पहली बार वर्ष 1885 में बनाई गई थी, जिसका उद्देश्य शहर में फैली बीमारियों से मुक्ति पाना था।दोनों मारबत यात्राएं अलग-अलग क्षेत्रों से निकलती हैं और एक जगह मिलकर एक साथ आगे बढ़ती हैं। इस दौरान लोग “इडा, पीडा, खासी खोकला घेऊन जागे मारबत!” जैसे नारे लगाते हैं।

मूर्तिकारों की पीढ़ियां निभा रही परंपरा

वासनिक के अनुसार जागनाथ बुधवारी के तर्हाने तेली समाज मंडल द्वारा 1885 से पीली मारबत निकाली जाती है। मारबत निर्माण में शेंडे परिवार और स्व. सदाशिव वस्ताद तडीकर की पीढ़ियां अब भी सक्रिय हैं। जुनी मंगलवारी में ‘तरुण पीली मारबत’ नामक प्रतिमा का निर्माण 124 वर्षों से किया जा रहा है, जिसकी शुरुआत स्व. काशीराम मोहनकर ने की थी। अब उनके पुत्र मनोहर मोहनकर यह परंपरा निभा रहे हैं।

बडग्या : बच्चों की कल्पना से जन्मी नई परंपरा

मारबत के साथ अब बडग्या की परंपरा भी जुड़ चुकी है। कागज, पेड़ों की टहनियों और घरेलू कचरे से बनाये गए इन पुतलों का निर्माण पहले बच्चे करते थे, जो अब वयस्कों तक फैल गया है। यह परंपरा समाज की बुराइयों पर कटाक्ष करती हैं। शहर में कई मंडल सामाजिक मुद्दों पर आधारित बडग्या का निर्माण करते हैं और उसका दहन करते हैं। ——————–

हिन्दुस्थान समाचार / मनीष कुलकर्णी

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