बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
इस दौरान कई वरिष्ठ वकीलों ने बिहार की वोटर लिस्ट के विस्तार पर आपत्ति जताई.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी के साथ वकील वृंदा ग्रोवर और प्रशांत भूषण ने कहा कि वोटर लिस्ट बनाने की प्रक्रिया कानून के अनुसार नहीं हुई है.
अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने की मांग करते हुए कहा, "पूरी प्रक्रिया चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. नागरिकता का निर्धारण चुनाव आयोग का काम नहीं है. वह यह नहीं कह सकता कि दो महीने में 8-9 करोड़ वोटर्स की नागरिकता तय कर देंगे."
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इस पर जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है कि वह तय करे कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक होने के आधार पर वोटर लिस्ट में रखा जाए या नहीं.
सिंघवी ने जवाब दिया कि चुनाव आयोग के पास यह अधिकार है, लेकिन अगर किसी ने एन्यूमरेशन फ़ॉर्म जमा नहीं किया है तो उनका नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटाया जा सकता.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि यह मानकर चलना होगा कि जिन्होंने पहले अपना वोट डाला है, वे भारत के नागरिक हैं. हालांकि, मौजूदा प्रक्रिया में लोगों को तब तक ग़ैर-नागरिक माना गया है, जब तक वे दस्तावेज़ न दें या फ़ॉर्म न भरें.
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कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि वोटर लिस्ट संशोधन में कुछ ऐसे लोग 'मृत' बताए गए हैं जो वास्तव में ज़िंदा हैं. इस पर पीठ ने उनसे कहा कि ऐसे लोगों की लिस्ट दें, ताकि अदालत चुनाव आयोग से जवाब मांग सके. हालांकि, सिब्बल ने कहा कि यह संभव नहीं है, क्योंकि उनके पास डेटा मौजूद नहीं है.
पीठ ने वकीलों से यह भी पूछा कि क्या वे पूरी स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (एसआईआर) प्रक्रिया पर ही सवाल उठा रहे हैं या सिर्फ़ चुनिंदा लोगों के नाम सूची में न होने पर. इस पर सिब्बल ने कहा कि पूरी प्रक्रिया क़ानून के ख़िलाफ़ है.
सिब्बल ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ड्राफ़्ट लिस्ट में अब तक 65 लाख नाम हटाए जा चुके हैं और अब दस्तावेज़ों के सत्यापन के बाद और नाम हटाए जा सकते हैं.
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर बाद में यह पाया गया कि बड़े पैमाने पर लोगों को बाहर कर दिया गया है और करोड़ों लोग लिस्ट से छूट गए हैं, तो वे पूरी प्रक्रिया को रद्द कर सकते हैं और चुनाव आयोग को एसआईआर से पहले वाली वोटर लिस्ट को ही अपनाने का निर्देश दे सकते हैं.
चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलीलें "सिर्फ अटकलों" पर आधारित हैं और उन्हें प्रक्रिया पूरी होने का इंतज़ार करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव ने क्या-क्या कहा?वकीलों की दलीलें पूरी होने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता और चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव ने अदालत में अपना पक्ष रखा. वकीलों ने जहां एसआईआर प्रक्रिया को अवैध बताते हुए अदालत से अंतरिम राहत देने की मांग की, वहीं योगेंद्र यादव ने कहा कि वह अदालत को दुनिया भर में वोटर लिस्ट पर अपनी रिसर्च और विश्लेषण के बारे में बताएंगे.
उनके मुताबिक, कई देशों में नागरिकों को वोट के लिए रजिस्टर करने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है, जबकि कुछ देशों में यह ज़िम्मेदारी नागरिकों पर होती है. एसआईआर प्रक्रिया के साथ यह ज़िम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी गई है.
उन्होंने दलील दी, "जहां भी यह ज़िम्मेदारी राज्य से हटाकर नागरिक पर डाल दी जाती है, वहां तुरंत लगभग एक चौथाई वोटर बाहर हो जाते हैं."
इसके बाद उन्होंने अदालत को बिहार एसआईआर की कई 'दिक्कतें' बताईं, जैसे दस्तावेज़ों की मांग, तय समयसीमा, और इतना बड़ा काम इतने कम समय में पूरा न हो पाने की चुनौती.
इसके बाद उन्होंने कहा, "सबसे अहम बात है समयसीमा. चुनाव आयोग मुझे यह भरोसा दिलाना चाहता है कि अगर मेरा नाम ड्राफ़्ट वोटर लिस्ट में नहीं है, तो मुझे नोटिस मिलेगा, मेरी बात सुनी जाएगी, पहली और दूसरी अपील का मौका मिलेगा." लेकिन उनका कहना था कि वोटर लिस्ट को लगभग 30 सितंबर तक अंतिम रूप देना होता है और "25 सितंबर को चुनाव आयोग मुझे बताएगा कि मेरा नाम हटा दिया गया है."
उन्होंने आगे दलील दी कि तय समय में जमा किए गए फ़ॉर्म्स की जांच करने के लिए हर इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफ़िसर को, बिहार में बाढ़ की स्थिति के बावजूद, अपने दूसरे कामों के साथ रोज़ाना 4,000 से अधिक फ़ॉर्म्स की जांच करनी होगी.
'हम ज़िंदा हैं भाई, देख लीजिए'
सुनवाई के आख़िर में उन्होंने अदालत में मौजूद दो लोगों को पेश किया और दावा किया कि इन्हें वोटर लिस्ट में 'मृत' घोषित कर दिया गया है. इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने आपत्ति जताते हुए कहा, "यह ड्रामा टीवी के लिए अच्छा है."
उन्होंने यह भी कहा कि प्रक्रिया को रोकने के बजाय लोगों को दूसरों की मदद करनी चाहिए ताकि उनके नाम वोटर लिस्ट में शामिल हो सकें.
इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि उनका विश्लेषण "बेहतरीन" है, भले ही अदालत उनके तर्कों से सहमत हो या न हो.
इस बीच, जिन दो लोगों को सुप्रीम कोर्ट में योगेंद्र यादव ने पेश किया, उनमें से एक आरा विधानसभा क्षेत्र, भोजपुर ज़िले के मिंटू कुमार पासवान हैं.
कोर्ट की कार्यवाही के बाद मिंटू पासवान ने बताया, "मेरा वोटर लिस्ट से नाम हट गया है, मुझे मृत घोषित कर दिया गया है. हम लोकसभा, विधानसभा चुनाव में वोट देते थे. अब कह रहे हैं कि (वोटर लिस्ट) अपडेट हो रहा है. वोटर लिस्ट से नाम हटाने के लिए किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं है, लेकिन नाम जोड़ने के लिए कई डॉक्यूमेंट मांगे जा रहे हैं. मैंने सोचा कि ये शायद ग़लती से हो गया होगा, लेकिन अब लगता है कि कोई जालसाज़ी किया है. फ़ैमिली में सबका नाम है, दो आदमी का नाम कट गया है."
उन्होंने आगे कहा, "अब मुझे सुप्रीम कोर्ट में आने का अवसर मिला तो खड़ा होना पड़ा कि हम ज़िंदा हैं भाई, देख लीजिए. अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेगा. हम तो आम आदमी हैं, कुछ कर नहीं सकते."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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