छत्तीसगढ़ के दुर्ग में धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोप में केरल की रहने वाली दो ननों की गिरफ़्तारी का मुद्दा गरमाता जा रहा है. रायपुर से लेकर दिल्ली और केरल तक, इस मुद्दे पर गहमागहमी बनी हुई है.
एक तरफ़ जहां छत्तीसगढ़ सरकार ने इस मामले में दावा किया है कि पुलिस अपना काम कर रही है, वहीं केरल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने ननों की गिरफ़्तारी को 'भूल' बताते हुए सफ़ाई दी कि दोनों ननों का 'मानव तस्करी' या 'धर्मांतरण' से कोई रिश्ता नहीं है.
इससे पहले सोमवार को केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी, वहीं दिल्ली में संसद के बाहर इंडिया गठबंधन के नेताओं ने प्रदर्शन किया. लोकसभा में भी कांग्रेस सांसद हिबी ईडन ने स्थगन प्रस्ताव का नोटिस देकर इस मामले पर चर्चा की मांग की.
इधर, मंगलवार को एक तरफ़ जहां केरल में भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री अनूप एंटनी जोसेफ रायपुर पहुंचे, वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के सांसदों का एक दल 'फैक्ट फाइंडिंग' के लिए दुर्ग पहुंचा.
मंगलवार को इंडिया गठबंधन के इन सांसदों ने दुर्ग जेल में बंद दोनों ननों से मुलाकात की. इस दल में सांसद के. फ्रांसिस जॉर्ज, बेनी बेहनन, सप्तगिरि उल्का, एन के प्रेमचंद्रन, रोजी एम जॉन समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता शामिल थे.
हालांकि वामपंथी दलों के सांसद के राधाकृष्णन, एए रहीम, पीपी सुनीर, जोस के मणी और नेता वृंदा करात और एनी राजा को इन ननों से मुलाकात की अनुमति नहीं मिली.
इस मुलाकात के बाद सांसद सप्तगिरि उल्का ने कहा, "जिन ननों को गिरफ़्तार किया गया है, उनमें से एक फार्मासिस्ट हैं और दूसरी नर्स हैं. इनकी वेशभूषा देख कर पुलिस ने बजरंग दल के लोगों को फोन करके बुलाया और फिर बजरंग दल के लोगों के हंगामे के बाद दोनों के ख़िलाफ़ धर्मांतरण और मानव तस्करी का आरोप लगा कर जेल भेज दिया. हम इस मामले में क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करेंगे और दोनों ननों के लिए न्याय की मांग करेंगे."

हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय इस मामले में पहले ही कह चुके हैं कि पुलिस ने मामले की जांच के बाद ननों को गिरफ़्तार किया है.
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, "बस्तर के नारायणपुर की तीन लड़कियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग दिलाने और उसके पश्चात नौकरी दिलाने का वादा किया गया था."
नारायणपुर के एक व्यक्ति ने इन तीनों लड़कियों को दुर्ग स्टेशन पर दो ननों के सुपुर्द कर दिया और नन इन तीनों लड़कियों को आगरा ले जा रही थीं.
विष्णुदेव साय ने कहा, "इसमें जांच हुई है और पूरा का पूरा मामला प्रलोभन दे कर ह्यूमन ट्रैफिकिंग और उसके पश्चात मतांतरण करने का है. इसमें मामला दर्ज हुआ है और इसकी जांच जारी है. ये मामला अदालती प्रक्रिया में है और क़ानून अपने हिसाब से काम करेगा. इसको राजनीतिक रूप देना किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है."
परिजनों ने किया इनकार
केरल की असिसी सिस्टर्स ऑफ मैरी इम्माकुलेट से जुड़ी सिस्टर वंदना फ़्रांसिस और सिस्टर प्रीति मैरी को शुक्रवार को बजरंग दल के एक स्थानीय नेता की शिकायत पर दुर्ग रेलवे स्टेशन से गिरफ़्तार किया गया था.
केरल की इन दोनों ननों और नारायणपुर के आदिवासी सुखमन मंडावी पर नारायणपुर की तीन आदिवासी लड़कियों की कथित तस्करी और उनके धर्मांतरण का आरोप लगाया गया था.
हालांकि ननों का कहना था कि तीनों लड़कियों को उनके और परिजनों की सहमति से काम के लिए ले जाया जा रहा है.
लेकिन मामला दर्ज़ करने के बाद पुलिस ने दोनों ननों और सुखमन मंडावी को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को आठ अगस्त तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.
इस बीच जिन तीन आदिवासी लड़कियों को कथित रुप से बहला फुसला कर, उनकी तस्करी और धर्मांतरण करने का आरोप है, उन लड़कियों के परिजनों ने इससे इनकार किया है.
उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वे कई साल पहले ही ईसाई धर्म अपना चुके हैं और इससे पहले इन लड़कियों की बड़ी बहनों ने भी इन ननों के साथ काम किया है.
परिजनों ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उन्होंने नारायणपुर थाने में पहुंच कर पुलिस को भी यह जानकारी दी है कि उनकी परिवार की लड़कियों को उनकी सहमति से नौकरी के लिए ले जाया जा रहा था.
केरल बीजेपी की सफ़ाई
इधर छत्तीसगढ़ सरकार के दावे के उलट भारतीय जनता पार्टी के केरल प्रदेश अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने ननों पर लगाए गए आरोपों को गलत बताते हुए कहा है कि दोनों नन "मानव तस्कर या धर्मांतरणकर्ता नहीं हैं."
राजीव चंद्रशेखर ने दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि 'गंभीर गलतफहमी और गलत सूचना' के कारण ये 'दुर्भाग्यपूर्ण गिरफ्तारियां' हुईं.
उन्होंने दावा किया कि नन इन महिलाओं को उनके माता-पिता की सहमति से नौकरी के लिए आगरा ले जा रही थीं.
उन्होंने कहा कि ये महिलाएँ वयस्क थीं और अपनी इच्छा से सिस्टर्स के साथ आई थीं.
राजीव चंद्रशेखर ने कहा, "ये बहनें जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोपों से पूरी तरह निर्दोष हैं. राज्य भाजपा ननों के साथ है और उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगी और उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने में मदद करेगी."
धर्मांतरण, मानव तस्करी और विवाद
छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण और मानव तस्करी राज्य के कई हिस्सों में एक बड़ा मुद्दा रहा है.
आम तौर पर काम करवाने के लिए सरगुजा संभाग से लड़कियों को महानगरों में ले जाने और उन्हें बंधक बना कर रखने के सैकड़ों मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में इनमें कमी आई है. हालांकि इनके पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं रहा है.
नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2018 में मानव तस्करी के 51, 2019 में 50, 2020 में 38, 2021 में 29 और 2022 में 26 मामले दर्ज किए गए.
लेकिन इसके ठीक उलट राज्य में धर्मांतरण का आरोप लगा कर होने वाले विवादों की संख्या पिछले कुछ सालों में तेज़ी से बढ़ी है.
बस्तर के इलाके में तो ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों को, मृत्यु के बाद गांवों में दफनाने को लेकर होने वाले विवाद बेहद आम है. वहां अक्सर धर्मांतरण के आरोप में चर्च और प्रार्थना भवनों में हिंदू संगठनों के साथ टकराव की घटना सामने आती हैं. कई अवसरों पर तो ऐसी घटनाएं हिंसक रूप लेती रही हैं और जिलों के पुलिस अधीक्षक तक ऐसी हिंसा की चपेट में आ कर गंभीर रुप से घायल हो चुके हैं.
गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में 2021-22 में धर्मांतरण की 31 शिकायतें मिली थीं, जिनमें से 9 में मामला दर्ज किया गया. इसी तरह 2022-23 में 11 शिकायतों में से 3 में मामला दर्ज किया गया. 2023-24 में धर्मांतरण को लेकर होने वाली शिकायतों की संख्या 16 थी, जिसमें जांच के बाद 9 में मामला दर्ज किया गया. अगले साल यानी 2024-25 में ऐसी शिकायतों की संख्या बढ़ कर 45 हो गई, जिसमें से 23 में मामला दर्ज किया गया.
2023 में छत्तीसगढ़ में सत्ता में आने के बाद राज्य की भाजपा सरकार ने जल्दी ही धर्मांतरण को लेकर एक कड़ा क़ानून बनाने की घोषणा की थी. लेकिन अभी तक वह क़ानून बना नहीं है.
राज्य के गृहमंत्री विजय शर्मा का दावा है कि अगले विधानसभा में ही धर्मांतरण क़ानून पेश किया जाएगा.
विजय शर्मा ने कहा-"छत्तीसगढ़ में अभी धर्मांतरण क़ानून 1968 लागू है. एक प्रावधान बीच में किया गया था 2006 में. उस समय तत्कालीन राज्यपाल महोदय ने उसको राष्ट्रपति जी के पास भेजा था. परंतु उस पर अंतिम निर्णय हुआ नहीं. अब 2006 के बाद 2025 है. 20 साल का समय बीत चुका है. नई परिस्थितियां अब सामने हैं. उन नई परिस्थितियों के आधार पर, नए प्रावधानों के साथ एक अच्छा क़ानून, जिससे समाज की इस कुरीति, इस बुराई को दूर रखा जा सके, इसको जरूर लेकर आ रहे हैं और मैं सोचता हूं कि अगले विधानसभा सत्र में यह आ जाएगा."
कहना मुश्किल है कि इस क़ानून के बाद राज्य में होने वाले धार्मिक विवाद पर किस हद तक रोक लग पाएगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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