रूस से तेल ख़रीदने से नाराज़ अमेरिका ने पिछले हफ़्ते भारत के ख़िलाफ़ 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
भारत के ख़िलाफ़ अमेरिका का ये सबसे ज़्यादा टैरिफ़ है.
अब अगर भारत रूस से तेल ख़रीदना बंद कर देता है, तो उसका ईंधन बिल काफ़ी बढ़ सकता है.
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सस्ते रूसी तेल से अरबों डॉलर बचाए हैं, लेकिन आम उपभोक्ताओं के लिए पेट्रोल सस्ता नहीं हुआ है.
छह अगस्त को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर "प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूस से तेल आयात करने" की वजह से अतिरिक्त 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा दिया था.
हालाँकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ये आदेश 27 अगस्त से लागू होगा.
लेकिन इसने अमेरिका को किए जाने वाले भारतीय निर्यात पर टैरिफ़ को बढ़ा कर 50 फ़ीसदी कर दिया है.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस क़दम को "अनुचित, अन्यायपूर्ण और ग़ैर-ज़रूरी" बताया.
मंत्रालय के बयान में कहा गया कि रूस से तेल ख़रीदना मार्केट फैक़्टर पर निर्भर है. ये आयात भारत के एक अरब 40 करोड़ लोगों की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ज़रूरी है.
चीन और तुर्की भी रूसी तेल के बड़े ख़रीदार लेकिन सबसे ज़्यादा टैरिफ़ भारत परसेंटर फॉर रिसर्च एनर्जी एंड क्लीन एयर के एक विश्लेषण के मुताबिक़ जून 2025 तक चीन, भारत और तुर्की, रूसी तेल के तीन सबसे बड़े ख़रीदार थे.
इसके बावजूद, सबसे ज़्यादा टैरिफ़ भारत पर लगाया गया है.
चीन पर 30 फ़ीसदी और तुर्की पर 15 फ़ीसदी अमेरिकी टैरिफ़ है. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है.
2024 में भारत के कुल निर्यात का 18 फ़ीसदी अमेरिका में हुआ था.
लेकिन 50 फ़ीसदी टैरिफ़ से भारत अमेरिकी बाज़ार में अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ जाएगा.
उदाहरण के लिए वियतनाम और बांग्लादेश की अमेरिका के क़ारोबार में अहम हिस्सेदारी है.
लेकिन उन पर सिर्फ़ 20 फ़ीसदी टैरिफ़ लगा है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक है.
देश की लगभग 85 फ़ीसदी तेल की जरूरतेंआयात से पूरी होती हैं.
यूक्रेन युद्ध से पहले भारत अपने अधिकतर तेल आयात के लिए मध्य-पूर्व के देशों पर निर्भर था.
वित्त वर्ष 2017-18 में भारत की तेल ख़रीद में रूस की हिस्सेदारी महज 1.3 फ़ीसदी थी.
लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद तस्वीर बदल गई.
रूस के कच्चे तेल की क़ीमत घटने के साथ भारत का रूस से आयात तेज़ी से बढ़ा.
वित्त वर्ष 2024-2025 तक भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी 35 फ़ीसदी तक हो गई.
आईसीआरए के अनुमानों के मुताबिक़ इन रियायती ख़रीद से भारत ने वित्त वर्ष 2022-23 में अपने आयात बिल पर 5.1 अरब डॉलर और वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2 अरब डॉलर की बचत की.
इस बदलाव से भारत के क्रूड बास्केट (आयातित तेल के लिए भारत सरकार का बेंचमार्क) की क़ीमत मार्च 2022 में 112.87 डॉलर प्रति बैरल थी.
लेकिन मई 2025 में ये घट कर 64 डॉलर प्रति बैरल रह गई.
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सस्ता क्रूड मिलने के बावजूद दिल्ली में पेट्रोल का औसत खुदरा मूल्य पिछले 17 महीनों से 94.7 रुपए प्रति लीटर पर स्थिर रहा.
यानी कम क़ीमत का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचा है.
पेट्रोल की क़ीमतों में चार चीज़ें शामिल होती हैं. डीलरों को चार्ज किया गया बेस प्राइस, डीलर कमिशन, एक्साइज ड्यूटी और वैट.
जनवरी 2025 में दिल्ली में पेट्रोल की क़ीमत 94.77 रुपए प्रति लीटर थी, जिसमें 55.08 रुपए डीलरों को चार्ज की गई बेस प्राइस थी.
4.39 रुपए डीलर का कमिशन था. 19.90 रुपए एक्साइज ड्यूटी और 15.40 रुपए बतौर वैट शामिल थे.
जुलाई 2025 तक डीलर प्राइस घटकर 53.07 रुपए प्रति लीटर हो गई. लेकिन खुदरा क़ीमतें जस की तस रहीं क्योंकि एक्साइज ड्यूटी बढ़ा कर 21.90 रुपए कर दी गई.
वित्त वर्ष 2024- 2025 में पेट्रोलियम सेक्टर से सरकार ने एक्साइज ड्यूटी के तौर पर 2.72 लाख करोड़ रुपए कमाए, जबकि राज्यों ने वैट से 3.02 लाख करोड़ रुपए जुटाए.
कोविड महामारी के दौरान केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी से कमाई इससे भी अधिक रही.
वित्त वर्ष 2020-21 में ये कमाई 3.73 लाख करोड़ रुपए तक जा पहुँची, जबकि इस दौरान ईंधन की क़ीमतें गिर गई थीं.
एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक़अगर भारत वित्त वर्ष 2025-26 के बचे महीनों में रूस से तेल का आयात बंद कर देता है, तो वित्त वर्ष 2025-26 में ईंधन बिल 9.1 अरब डॉलर पर पहुँच जाएगा.
वहीं वित्त वर्ष 2026-27 में ये 11.7 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है.
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हाल ही में आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, "अगर तेल आयात का स्रोत बदलता है, तो क़ीमत पर उसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि उस समय अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें क्या हैं और दूसरे हालात कैसे हैं.''
मल्होत्रा ने कहा, ''एक और अहम बात यह है कि तेल की क़ीमतें ऊपर जाएँगी या कम होंगी- ये इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार एक्साइज ड्यूटी और दूसरे टैक्स कम करके अपने ऊपर कितना भार लेती है.
इसलिए हमें फ़िलहाल इस वजह से महंगाई पर कोई बड़ा असर नहीं दिख रहा. मेरा मानना है कि अगर कोई झटका आता है, तो सरकार आर्थिक मोर्चे पर उचित फ़ैसला लेगी."
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक इंडिपेंडेंट एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के चेयरमैन नरेंद्र तनेजा ने बीबीसी से कहा कि अगर भारत रूस से तेल ख़रीदना बंद कर देता है, तो ये मात्रा अचानक ग्लोबल सप्लाई सिस्टम से ग़ायब हो जाएगी. इससे तेल की क़ीमतें बढ़ने की आशंका है.
उन्होंने ये भी कहा कि इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.
उनकी ये भी दलील थी कि अगर रूस से भारत की तेल ख़रीद ग्लोबल सप्लाई सिस्टम से ग़ायब हो जाती है, तो कोई भी बाज़ार उस मांग को पूरा नहीं कर पाएगा.
इसलिए क़ीमत निश्चित रूप से बढ़ेगी. कितना बढ़ेगी, यह कहना मुश्किल है.
लेकिन एक बात साफ़ है कि इसका असर दुनिया भर के ज़्यादातर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा और सबसे ज़्यादा अमेरिकी उपभोक्ता प्रभावित होंगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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