कोरिया युद्ध (1950-53) के बाद उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति बने किम इल संग के लिए अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का कोई महत्व नहीं था और देश के भीतर उनकी इच्छा ही क़ानून था.
उत्तर कोरिया में तब से लेकर आज तक प्रेस पर तमाम तरह की पाबंदियाँ हैं, देश में स्वतंत्र मीडिया नहीं है, विदेशी मीडिया को रिपोर्टिंग करने की अनुमति नहीं है. देश के राजकाज में इतनी गोपनीयता है कि निष्पक्ष तरीके से बहुत कम जानकारियाँ मिल पाती हैं.
अपने जीवन के अंतिम वर्षों में किम इल संग को परमाणु हथियारों का ज़ख़ीरा बनाने का जुनून पैदा हो गया था. जब 1994 में उनका निधन हुआ तो उनकी जगह सत्ता में आए उनके बेटे किम जोंग इल ने भी उनकी नीतियाँ ही जारी रखीं.
रिचर्ड वर्थ ने किम जोंग इल की जीवनी में लिखा, "दुनिया की बहुत कम सरकारें हैं जिन्होंने रोटी और बंदूकों के विकल्प में बिना किसी हिचक के बंदूकों को चुना है. लोगों में भुखमरी के बावजूद उत्तर कोरिया ने न सिर्फ़ करीब 10 लाख सैनिकों की सेना बनाई है बल्कि आधुनिक हथियारों को बाहरी देशों को बेचने की क्षमता भी विकसित की है. 1998 में उत्तर कोरिया ने ताइपो डौंग मिसाइल का परीक्षण किया जिसके बारे में संभावना व्यक्त की गई थी कि वो अमेरिकी धरती तक भी पहुंच सकती है."
साल 1994 से लेकर 2011 तक उत्तर कोरिया के सुप्रीम नेता रहे किम जोंग इल ने जिस तरह से अपने शासन के दौरान परमाणु हथियारों के ख़तरे से दुनिया को डराए रखा. उसने उन्हें कुख्यात कर दिया.
जन्म को लेकर मिथककिम जोंग इल का जन्म 16 फ़रवरी 1942 में रूस के एक गाँव व्यात्सकोए में हुआ था लेकिन उत्तर कोरिया के लोगों से हमेशा ये बात छिपाई गई.
पॉल फ़्रेंच ने अपनी किताब 'नॉर्थ कोरिया, स्टेट ऑफ़ पेरोनिया' में लिखा, "सरकारी प्रचार में बताया गया कि किम का जन्म उत्तर कोरिया के सबसे पवित्र स्थान माउंट पैकटू में हुआ, जब उनका जन्म हुआ तो माउंट पेक्टू का ग्लेशियर फट गया और आकाश में एक साथ दो इंद्रधनुष दिखाई दिए. तभी आसमान में एक नया तारा भी देखा गया. उस समय सर्दी का मौसम था जो तुरंत बसंत में बदल गया. उनके बारे में ये भी मिथक फैलाया गया कि उन्होंने तीन सप्ताह की उम्र से ही चलना शुरू कर दिया था और दो महीने का होते-होते उन्होंने बोलना शुरू कर दिया था."
तीन वर्षों तक चले कोरियाई युद्ध के दौरान उनके पिता ने उन्हें चीन में रखा था ताकि उनकी जान को कोई ख़तरा न हो.
इस दौरान किम जोंग इल निजी दुखों से भी जूझ रहे थे. जब वो पाँच साल के थे उनके भाई का देहांत हो गया. जब वे छह साल के थे तब उनकी माँ भी चल बसीं. उनके पिता नया देश चलाने में व्यस्त थे और उनके पास बेटे के लिए समय नहीं था.
साल 1966 में इल को उत्तर कोरिया के प्रचार विभाग में एक भूमिका दी गई. उनको ये बड़ी ज़िम्मेदारी दी गई कि वो उत्तर कोरियाई लोगों में ये मिथक फैलाएं कि उनके पिता किम इल संग एक 'जीवित भगवान' हैं.
इस कहानी में लोगों को बताया गया कि किम इल संग एक मसीहा हैं जिन्होंने कोरिया युद्ध जीतकर उत्तर कोरिया को आज़ादी दिलाई है.
किम जोंग इल को बचपन से ही फ़िल्मों में गहरी रुचि थी. उनकी नज़र में फ़िल्मों के ज़रिए लोगों की भावनाओं को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता था.
इल मोशन पिक्चर्स एंड आर्ट्स डिवीजन के निदेशक बन गए. उनके नेतृत्व में उत्तर कोरिया हर साल 60 फ़िल्में बनाने लगा.
उनके पास हॉलीवुड फ़िल्मों का ज़बरदस्त संग्रह था. कहा जाता है कि उनके पास 20 हज़ार फ़िल्मों की डीवीडी मौजूद थीं. एलिज़ाबेथ टेलर उनकी पसंदीदा हीरोइन थीं.
साल 1978 में उन्होंने दक्षिण कोरिया के फ़िल्म निर्माता शिन सैक ओक और उनकी पत्नी को हिरासत में ले लिया और उन्हें अलग-अलग जेलों में रखा गया.
इल ने इस जोड़े को आठ वर्षों तक उत्तर कोरिया के लिए प्रचार फ़िल्में बनाने के लिए मजबूर किया. साल 1986 में ये दंपती किसी तरह उत्तर कोरिया से भागने में कामयाब रहे.
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उत्तर कोरिया की सरकारी मीडिया के अनुसार किम को 'दुनिया के महानतम नेताओं में गिना जाता है' और उनका जन्म दिन पूरे विश्व में मनाया जाता है. उनके सम्मान में पूरी दुनिया में समारोह आयोजित किए जाते हैं.
उत्तर कोरिया में आलम ये था कि उनके सम्मान में एक गीत लिखा गया जिसका भावार्थ था , 'आपके बिना मातृभूमि नहीं.' इस गीत में जिसे बार-बार उत्तर कोरिया के रेडियो स्टेशनों से बजाया जाता था, एक लाइन ये भी थी, 'कॉमरेड किम जोंग इल आपके बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है.'
जब भी वे सार्वजनिक दौरे पर होते तो बहुत साधारण कपड़े पहनते. उत्तर कोरिया के एक अख़बार 'अरोडोंग सिनमुन' ने उनके बारे में लिखा था, 'अपने ख़ाकी सूटों की वजह से किम दुनिया के सबसे बड़े फ़ैशन आइकन बन गए थे.'
उस लेख में एक अनाम फ़्रेंच फ़ैशन डिज़ाइनर को ये कहते बताया गया था कि किम का सूट पूरी दुनिया में लोकप्रिय होता जा रहा है.
उनके बारे में प्रचार किया जाता था कि वो दिन भर में केवल एक कटोरा चावल खाते हैं.
उनके जीवनीकार रिचर्ड वर्थ लिखते हैं, "ये सब दिखावा भर था. असल ज़िंदगी में उनका विलासिता भरा जीवन उत्तर कोरिया की जनता के रहन-सहन के ठीक विपरीत था. वो इम्पोर्टेड सिगरेट पीते थे, महंगी कारों पर सवारी करते थे और महंगी कोनयेक ब्रैंडी के शौकीन थे. वो उत्तर कोरिया में विदेशी खाद्य पदार्थों के आयात के सख़्त ख़िलाफ़ थे लेकिन उन्हें विदेशी व्यंजन बहुत पसंद थे. उनके लिए ईरान से ख़ास तौर से ब्लैक कैवियर, चेकोस्लोवाकिया से क्राफ़्ट बियर और मलेशिया से ताज़े फल मंगवाए जाते थे."
साल 2001 में जब वो रूस गए थे तो उनके साथ मौजूद रूसी दूत कोंसटैनटिन पुलिकोस्की ने बताया था, "उनके भोजन के लिए रोज़ ताज़े झींगे हवाई जहाज़ से भेजे जाते थे. किम इनको चाँदी की चॉप स्टिक से खाते थे और फिर इसके बाद दुनिया की चुनिंदा शैंपेन पिया करते थे."
जेम्स रॉबिंस ने बीबीसी में छपे एक लेख में लिखा था, "साल 2000 में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति किम दे जंग के साथ हुई शिखर बैठक के दौरान उन्हें 10 गिलास वाइन पीते हुए देखा गया था."
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एडम मेलिस किम जोंग इल की अनाधिकृत जीवनी में लिखते हैं, "किम का क़द बहुत ऊँचा नहीं था. उनमें हमेशा इस बात की हीन-भावना रही कि उनका क़द सिर्फ़ 5 फ़ीट 3 इंच है. शायद यही कारण था कि वो हमेशा प्लेटफॉर्म हील के जूते पहनते थे. इस बात की भी बहुत चर्चा होती थी कि उन्हीं अंगरक्षकों को उनकी सेवा में तैनात किया जाता था जिनका क़द उनसे छोटा हुआ करता था, ताकि वो (किम) उनसे लंबे दिखाई दें."
दक्षिण कोरिया में भले ही उन्हें एक कमअक्ल व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता रहा हो लेकिन उनसे मिलने वाले नेताओं का मानना था कि उनकी अंतरराष्ट्रीय मामलों पर अच्छी पकड़ थी.
अमेरिकी की पूर्व विदेश मंत्री मैडलीन अलब्राइट ने अपनी आत्मकथा 'मैडम सेक्रेट्री' में लिखा था, "किम एक बुद्धिमान व्यक्ति थे. उनको पता था कि उनको क्या चाहिए. अपने देश की ख़राब हालत के बावजूद वो ये आभास बिल्कुल नहीं देते थे कि उनको किसी चीज़ की ज़रूरत है या उन्हें किसी बात की चिंता है. वो हमेशा आत्मविश्वास से भरे दिखाई देते थे."
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इस दौरान किम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना बनाने के साथ-साथ परमाणु हथियार भी विकसित कर रहे थे. वे ये भी सुनिश्चित कर रहे थे कि पश्चिमी देशों को उनकी गतिविधियों की पूरी जानकारी मिलती रहे.
उन्होंने अपने परमाणु कार्यक्रम के बारे में जान-बूझ कर सूचनाएं लीक करवाईं और अपने मिसाइल परीक्षणों का ज़ोर-शोर से प्रचार करवाया.
उन्होंने अपने सैनिकों को निर्देश दिए कि वो दक्षिणी कोरिया से लगी सीमा पर छोटी-मोटी गोलीबारी करते रहें ताकि इलाके में तनाव बना रहे और दुनिया भर के अख़बार लिखें कि उत्तर कोरिया युद्ध के कगार पर है.
फिर वो अपने ही बनाए हालात को ठीक करते हुए अपने सैनिकों को संयम बरतने के निर्देश देते और मिसाइल परीक्षणों पर अस्थाई रोक लगा देते. दुनिया चैन की साँस लेती और उत्तर कोरिया को वो सभी रियायतें मिल जातीं जिसकी वो उम्मीद लगाए बैठा था.
विडंबना ये थी कि जब किम सेना के रख-रखाव और परमाणु हथियार बनाने में अरबों डॉलर ख़र्च कर रहे थे उत्तर कोरिया के लोग बेहद ग़रीबी में जी रहे थे.
किम जोंग इल के पास कई पद थे लेकिन राष्ट्रपति का पद उनमें शामिल नहीं था. ये पद उनके पिता किम इल संग को अनंतकाल तक के लिए दिया गया था. उनका औपचारिक पद राष्ट्रीय रक्षा आयोग के अध्यक्ष का था. उत्तर कोरिया में राष्ट्रीय रक्षा आयोग को सत्ता का केंद्रबिंदु माना जाता था.
इसके अलावा वो उत्तर कोरियाई सेना के सुप्रीम कमांडर भी थे.
एडम मेलिस किम जोंग इल की अनधिकृत जीवनी में लिखते हैं, "ख़ुफ़िया मामलों के जानकारों का मानना है कि किम ने ही 1983 में म्यांमार में रंगून में बम विस्फोट के आदेश दिए थे जिसमें दक्षिण कोरिया के 21 वरिष्ठ अधिकारी और चार कैबिनेट मंत्री मारे गए थे. उन्होंने ही साल 1987 में बग़दाद से सियोल आ रहे दक्षिण कोरिया के एक विमान में बम रखने के आदेश दिए थे जिसमें 116 लोग मारे गए थे."
इस तरह के कई आरोप उत्तर कोरिया और उसके शासकों पर लगते रहे हैं लेकिन उन्होंने मीडिया को कभी किसी सवाल का जवाब नहीं दिया.
साल 2002 में उत्तर कोरिया ने स्वीकार किया कि वो परमाणु हथियार बनाने की योजना पर काम कर रहा है.
उसने दिसंबर में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के इंस्पेक्टरों को अपने देश से निकाल दिया और साल 2003 में परमाणु अप्रसार संधि से बाहर आने का एलान कर दिया.
फ़रवरी, 2005 में उत्तर कोरिया ने स्वीकार किया कि उसके पास परमाणु हथियार हैं. अक्तूबर, 2006 में उसने अपना पहला परमाणु परीक्षण करके दुनिया को दहला दिया. मई, 2009 में उसने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया.
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साल 2008 में किम जोंग इल अचानक बिना किसी स्पष्टीकरण के सार्वजनिक जीवन से ग़ायब हो गए. दस महीने बाद जब वो फिर से प्रकट हुए तो वो बहुत दुबले और बीमार दिख रहे थे.
अगले तीन साल उन्होंने अपने किलेनुमा निवास में बिताए. वहाँ उनकी सेहत और ख़राब होनी शुरू हुई.
17 दिसंबर, 2011 को उत्तर कोरिया के टेलीविजन पर घोषणा हुई कि उनके प्रिय नेता किम जोंग इल इस दुनिया में नहीं रहे.
पश्चिम में बहुत से लोगों को उम्मीद बँधी कि उनकी मौत के बाद उत्तर कोरिया की नीतियों में बड़ा परिवर्तन आएगा, ख़ास तौर पर ये देखते हुए कि उनके बाद सत्ता में आए उनके पुत्र किम जोंग उन स्विटज़रलैंड में पढ़े थे लेकिन ये उम्मीद ग़लत साबित हुई.
उन्होंने लगभग उसी अंदाज़ में उत्तर कोरिया पर शासन करना जारी रखा है जिस अंदाज़ में उनके दादा किम इल संग और पिता किम जोंग इल शासन किया करते थे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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