यमन में भारत की नर्स निमिषा प्रिया को मिली सज़ा-ए-मौत को माफ़ी में तब्दील कराने की कोशिश जारी है लेकिन अभी तक कामयाबी नहीं मिली है.
16 जुलाई को निमिषा को गोली मार मौत की सज़ा मिल जाती लेकिन ऐन मौक़े पर इसे टाल दिया गया था. 2017 में अपने एक बिज़नेस पार्टनर की हत्या के मामले में निमिषा प्रिया को यमन की स्थानीय अदालत ने 2020 में मौत की सज़ा सुनाई थी.
निमिषा प्रिया के बिज़नेस पार्टनर यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी थे. निमिषा अब्दो के साथ ही यमन की राजधानी सना में एक क्लिनिक चलाती थीं.अब्दो के शव के कई टुकड़े पानी के टंकी से बरामद हुए थे. निमिषा प्रिया केस की चर्चा यमन और अरब के मीडिया में भी हो रही है.
यमन की अरबी न्यूज़ वेबसाइट अल-माहिराहने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''यमन के इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ निमिषा प्रिया को माफ़ी तभी मिल सकती है, जब पीड़ित परिवार इसके लिए तैयार हो जाए.''
अल-यमन-अल-ग़ाद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''निमिषा के वकीलों ने नौ जुलाई को बताया था कि 16 जुलाई को निमिषा को मौत सज़ा को अंजाम तक पहुँचाने की तारीख़ तय की गई है. यमन के शरिया क़ानून के मुताबिक़ निमिषा के परिवार वालों ने पीड़ित परिवार को 10 लाख डॉलर ब्लड मनी के तौर पर ऑफर किया था लेकिन कोई समझौता नहीं हो पाया.''
''निमिषा को बचाने में कई अहम धार्मिक स्कॉलर भी शामिल हैं. इसमें यमन के सूफ़ी स्कॉलर शेख़ हबीब उमर बिन हाफ़िज़ भी शामिल हैं. भारत सरकार भी राजनयिक स्तर पर कोशिश कर रही है लेकिन हूतियों से अच्छे संबंध नहीं होने के कारण सफलता नहीं मिल पा रही है.''
अल-यमन-अल-ग़ाद ने लिखा है, ''निमिषा प्रिया केस अब कोई सामान्य अपराध की घटना नहीं है. इसमें क़ानून, परंपरा, राजनीति और धर्म सब शामिल हो गए हैं. मौत की तारीख़ होने के बाद भी टल जाने से उम्मीद ज़रूर बढ़ी है.''
यूएई के गल्फ़ न्यूज़ ने लिखा है, ''निमिषा प्रिया के मामले में भारत के सामने बड़ी चुनौती यह है कि यमन में उसकी राजनयिक मौजूदगी बहुत कम है. भारत हूतियों के शासन को मान्यता नहीं देता है. भारत के पास हस्तक्षेप के लिए बहुत ही सीमित विकल्प हैं. भारत क़बाइली और धार्मिक नेताओं के ज़रिए निमिषा की जान बचाने की कोशिश कर रहा है. आख़िरी पलों में भारत के ग्रैंड मुफ़्ती के ज़रिए कोशिश की गई और जिस दिन मौत मिलनी थी, उसे टालने में कामयाबी भी मिली. लेकिन ख़तरा अब भी टला नहीं है.''
अरबी न्यूज़ वेबसाइट अल-क़ुद्स ने अपनी रिपोर्ट में तलाल अब्दो महदी के भाई अब्दुल फ़तह महदी की फ़ेसबुक पोस्ट का ज़िक्र किया है.
अल क़ुद्सके अनुसार, यह पोस्ट बुधवार की है. इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ''मध्यस्थता और बातचीत में कुछ भी नया नहीं है और न ही हैरान करने वाला है. सालों से इस मामले में मध्यस्थता की पुरज़ोर कोशिश की गई है. इसके बावजूद हमारे रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है. हमारी मांगें स्पष्ट हैं. अपराधी को सज़ा मिलनी चाहिए. इसके अलावा हमें कुछ और नहीं चाहिए.''
''दुर्भाग्य से फांसी टल गई है, जिसकी हमें उम्मीद नहीं थी.अदालत को पता है कि हमने किसी भी तरह के समझौते से इनकार कर दिया है. जब तक मौत मिल नहीं जाती हमारी कोशिश जारी रहेगी. किसी भी दबाव में हम झुकने वाले नहीं हैं. ख़ून का सौदा नहीं हो सकता है. इंसाफ़ मिलने में भले लंबा वक़्त लगे लेकिन हम कोई समझौता नहीं करेंगे.''
अल-क़ुद्स के मुताबिक़ अब्दुल फ़तह महदी ने लिखा है, ''भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है कि तलाल ने निमिषा का पासपोर्ट जब्त कर लिया और उनका शोषण किया गया लेकिन इसमें तनिक भी सच्चाई नहीं है. निमिषा ने किसी भी अदालती सुनवाई में इस तरह के दावे नहीं किए थे और न ही उनकी लीगल टीम ने ऐसा कहा था. हमें खेद है कि भारतीय मीडिया तथ्यों के साथ छेड़छाड़ कर रहा है.''
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निमिषा प्रिया को बचाने के अभियान में लगी 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' ने मंगलवार को बताया था कि सोमवार, 14 जुलाई को केरल के बेहद सम्मानित और प्रभावशाली मुस्लिम धर्मगुरु माने जाने वाले ग्रैंड मुफ़्ती एपी अबूबकर मुसलियार ने 'यमन के कुछ शेख़ों' से निमिषा प्रिया मामले को लेकर बात की.
सुप्रीम कोर्ट के वकील और काउंसिल के सदस्य सुभाष चंद्रा ने बीबीसी हिंदी को बताया था, "सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल के सदस्यों ने ग्रैंड मुफ़्ती से मुलाक़ात की थी, जिसके बाद उन्होंने वहां (यमन) कुछ प्रभावशाली शेख़ों से बात की."
चंद्रा ने कहा, "हमें बताया गया है कि एक बैठक बुलाई गई है जिसमें मृतक के कुछ रिश्तेदारों सहित प्रभावशाली लोग भी मौजूद रहेंगे."
16 जुलाई को निमिषा प्रिया को मौत की सज़ा दी जानी थी और सिर्फ़ 48 घंटे पहले कंथापुरम या मुसलियार के दख़ल से पीड़ित परिवार से बातचीत में गति आई है.
मुसलियार को अनौपचारिक तौर पर भारत के 'ग्रैंड मुफ़्ती' की उपाधि भी दी गई है, उनको सुन्नी सूफ़ीवाद और शिक्षा में योगदान के लिए जाना जाता है. हालांकि महिलाओं पर दिए गए उनके बयानों की भी कई बार निंदा हो चुकी है.
केरल यूनिवर्सिटी के इस्लामिक हिस्ट्री के प्रोफ़ेसर अशरफ़ कडक्कल बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "अपने अनुयायियों के लिए वह किसी पैग़ंबर की तरह हैं. कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि उनके पास जादुई शक्तियां हैं."
"वह बरेलवी संप्रदाय से आते हैं. सूफ़ी सम्मेलन में उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मानित कर चुके हैं. लेकिन महिलाओं को लेकर उनके रवैये की बेहद आलोचना होती रही है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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