शहर के सांस्कृतिक परिदृश्य में रविवार की शाम यादगार बन गई जब कलंदर संस्था, जयपुर की ओर से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में प्रसिद्ध नाट्य लेखक वसंत कानेटकर द्वारा लिखित और रुचि भार्गव नरूला के निर्देशन में तैयार नाटक ‘ढ़ाई आखर प्रेम का’ का मंचन किया गया। यह नाटक कानेटकर के लोकप्रिय मराठी नाटक ‘प्रेमा, तुझा रंग कसा?’ का हिंदी रूपांतरण है, जिसने अपनी गहन भावनात्मक प्रस्तुति से दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
नाटक का केंद्र बिंदु मानव संबंधों, प्रेम और सामाजिक मान्यताओं के टकराव पर आधारित था। इसमें यह दिखाया गया कि कैसे प्रेम सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक दृष्टिकोण है। नाटक की कहानी समाज की रूढ़िवादी सोच, रिश्तों की जटिलता और मानवीय भावनाओं के द्वंद्व को बेहद संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत करती है।
निर्देशिका रुचि भार्गव नरूला ने संवादों, मंच सज्जा और कलाकारों के अभिनय को इस तरह से संयोजित किया कि हर दृश्य दर्शकों के मन में छाप छोड़ गया। उन्होंने मंच पर प्रकाश और संगीत का संतुलित उपयोग करते हुए नाटक के भावनात्मक पलों को और प्रभावी बनाया। दर्शकों ने कई बार तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।
मुख्य भूमिकाओं में कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया। संवादों की गहराई और भावनाओं की सजीवता ने दर्शकों को पात्रों की स्थितियों से जोड़ दिया। प्रेम, त्याग और आत्मसम्मान जैसे विषयों पर आधारित इस नाटक ने हर व्यक्ति को अपने भीतर झांकने पर मजबूर किया।
नाटक के अंत में प्रेम के शाश्वत संदेश — “प्रेम का अर्थ सिर्फ पाने में नहीं, बल्कि समझने और निभाने में है” — ने पूरे सभागार को कुछ क्षणों के लिए मौन कर दिया। यही मौन इस बात का प्रमाण था कि नाटक ने दर्शकों के दिल को छू लिया है।
कार्यक्रम के बाद संस्था की ओर से निर्देशक और कलाकारों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर जयपुर के कई रंगकर्मी, साहित्यकार, शिक्षाविद और कला प्रेमी उपस्थित रहे। सभी ने नाटक की प्रस्तुति की सराहना करते हुए कहा कि “ढ़ाई आखर प्रेम का” न केवल मनोरंजक था, बल्कि समाज को एक गहरा संदेश देने वाला नाटक भी साबित हुआ।
कलंदर संस्था, जयपुर, लंबे समय से सार्थक और सामाजिक सरोकारों पर आधारित नाटकों का मंचन करती रही है। संस्था की यह प्रस्तुति भी उनके इसी उद्देश्य का विस्तार थी — जहाँ मनोरंजन के साथ विचार और संवेदना का संदेश भी निहित था।
नाटक की सफलता ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि जयपुर नाट्य जगत में सशक्त मंचीय प्रस्तुतियों की परंपरा आज भी जीवित है। दर्शकों की भारी उपस्थिति और उत्साह इस बात का प्रमाण था कि समाज में आज भी सशक्त नाट्य कला के लिए गहरी रुचि और सम्मान मौजूद है।
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