राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला न केवल युद्धों और वीरगाथाओं के लिए, बल्कि आस्था के प्रतीकों के लिए भी जाना जाता है। सावन के पवित्र महीने में यहाँ स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर हज़ारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर पाँच हज़ार साल पुराना है और इसका सीधा संबंध पांडवों से है। भीम द्वारा स्थापित इस विशाल शिवलिंग का अभिषेक आज भी उसी श्रद्धा और ऊर्जा के साथ किया जाता है जैसा प्राचीन काल में किया जाता था। चित्तौड़गढ़ किले की पहाड़ियों पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर का इतिहास जितना पुराना है, उतनी ही इसकी मान्यताएँ भी गहरी हैं। यह शिवलिंग लगभग 10 टन वज़नी और 4.5 फीट ऊँचा है, जिसकी परिक्रमा 10 फीट की है।
ऐसा माना जाता है कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भीम इसे अपनी बांह पर बांधकर प्रतिदिन अभिषेक करते थे। बाद में भीम ने इसे यहीं स्थापित किया। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह मंदिर पांडव काल के चित्रकूट नगर में स्थापित था, जिसे अब चित्तौड़गढ़ कहा जाता है।
सावन के महीने में नीलकंठ महादेव मंदिर की शोभा चरम पर होती है। प्रतिदिन सुबह 5 बजे से ही भक्तों की कतार लगनी शुरू हो जाती है। विशेषकर श्रावण सोमवार को यहाँ विशेष श्रृंगार, रुद्राभिषेक और भव्य पूजा-अर्चना होती है। मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य इसकी भक्ति में चार चाँद लगा देता है, क्योंकि यह किले की ऊँचाई पर स्थित है और वहाँ से पूरे चित्तौड़ का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
इतिहासकारों के अनुसार, चित्तौड़गढ़ का यह शिव मंदिर गुप्त काल से भी पहले का हो सकता है, क्योंकि इसकी स्थापत्य शैली और शिल्पकला पांडव काल के प्रतीकों से मेल खाती है। हालाँकि इसका कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन लोककथाओं और पुरातात्विक संकेतों के आधार पर इसे पाँच हज़ार वर्ष पुराना माना जाता है। यह मंदिर एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि यहाँ हर साल आने वाले भक्तों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे पर्यटन और धार्मिक यात्रा दोनों को बढ़ावा मिल रहा है।
पाँच हज़ार साल पुरानी मान्यताओं और पांडवों से जुड़े गौरवशाली इतिहास को संजोए नीलकंठ महादेव मंदिर आज भी शिव भक्तों की सबसे बड़ी आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन के महीने में यहां भक्ति, प्रकृति और इतिहास का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
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