राजस्थान की धरती अपने शानदार किलों और महलों के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इनमें से एक है आमेर फोर्ट (Amber Fort), जिसे अम्बर का किला भी कहा जाता है। यह जयपुर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा हुआ है। अपनी राजसी भव्यता, स्थापत्य कला और ऐतिहासिक महत्व के कारण आमेर फोर्ट न केवल राजस्थान की पहचान है, बल्कि यह यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में भी शामिल है। करीब 1000 साल पुराने इस किले का इतिहास कछवाहा राजवंश से गहराई से जुड़ा है, जिसने इसे अपनी शक्ति, गौरव और संस्कृति का प्रतीक बनाया।
कछवाहा राजवंश और आमेर का उदयआमेर का इतिहास 10वीं शताब्दी से जुड़ा है। कछवाहा राजवंश ने सबसे पहले अपनी राजधानी आमेर को बनाया और इसे शक्ति का केंद्र स्थापित किया। कछवाहा शासकों ने इस किले का उपयोग न केवल प्रशासनिक कार्यों के लिए किया, बल्कि युद्ध और रणनीति में भी इसे अपनी मजबूती का आधार बनाया। आमेर फोर्ट को समय-समय पर शासकों ने विकसित किया और इसका विस्तार किया। शुरुआत में यह एक छोटा-सा किला था, लेकिन बाद में इसमें महलों, मंदिरों और सुरक्षा के लिए मजबूत दीवारों का निर्माण किया गया।
वास्तुकला का अद्भुत नमूनाआमेर फोर्ट राजपूत और मुगल शैली की मिश्रित वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। यहां के महल, बाग, मंदिर और आंगन इतनी बारीकी से बनाए गए हैं कि हर एक जगह अपनी कहानी कहती है। फोर्ट में संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है।
-
दीवान-ए-आम: यह जगह दरबार और आम जनता की सुनवाई के लिए बनाई गई थी।
-
दीवान-ए-खास: यहां राजा अपने खास मंत्रियों और अतिथियों से मुलाकात करते थे।
-
शिश महल: कांच और शीशों से सजा यह महल अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
-
गणेश पोल: इस द्वार की नक्काशी और कलात्मक डिजाइन आज भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
कछवाहा शासकों ने आमेर फोर्ट को केवल शाही निवास के तौर पर नहीं देखा, बल्कि इसे एक सैन्य किले के रूप में भी मजबूत बनाया। पहाड़ों पर बना यह किला सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। अरावली की ऊँचाइयों पर बने इस किले से चारों ओर नजर रखी जा सकती थी, जिससे दुश्मन के आक्रमण को रोकना आसान हो जाता था।
मुगल और राजपूत संबंधआमेर फोर्ट के इतिहास में मुगल और राजपूत संबंध भी अहम स्थान रखते हैं। राजा मान सिंह, जो अकबर के नवरत्नों में शामिल थे, ने इस किले को सजाने-संवारने में अहम भूमिका निभाई। मुगलों के साथ हुए गठबंधन ने कछवाहा शासकों की ताकत को और भी बढ़ा दिया। आमेर फोर्ट में मुगल कला और स्थापत्य का प्रभाव साफ दिखाई देता है, जो राजपूतों की पारंपरिक शैली के साथ मिलकर इसे और भी भव्य बना देता है।
धार्मिक महत्वआमेर फोर्ट सिर्फ राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र नहीं था, बल्कि इसका धार्मिक महत्व भी है। यहां शिला देवी का मंदिर स्थित है, जो आज भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। कछवाहा राजाओं की कुलदेवी शिला माता को यहां स्थापित किया गया था और हर युद्ध से पहले उनकी पूजा की जाती थी। यह मंदिर आमेर फोर्ट की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
आमेर से जयपुर तक18वीं शताब्दी में जब सवाई जय सिंह द्वितीय ने जयपुर नगर की स्थापना की, तब राजधानी को आमेर से जयपुर स्थानांतरित कर दिया गया। हालांकि जयपुर बसने के बाद भी आमेर का महत्व कम नहीं हुआ। यह किला कछवाहा वंश की शान और इतिहास का अमिट हिस्सा बना रहा।
आज का आमेर फोर्टआज आमेर फोर्ट जयपुर आने वाले हर पर्यटक के लिए एक खास आकर्षण है। यहां हाथियों की सवारी से लेकर लाइट एंड साउंड शो तक सब कुछ लोगों को 1000 साल पुराने इतिहास की झलक दिखाता है। हर साल लाखों पर्यटक यहां आते हैं और राजपूताना गौरव और वैभव को करीब से महसूस करते हैं।
You may also like
बिहार: प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के लाभार्थियों को मिली टूल किट, बोले- आर्थिक स्थिति होगी मजबूत
डूसू चुनाव: देवेंद्र यादव ने छात्रों से एनएसयूआई के समर्थन में वोट करने की अपील की
ईडी की बड़ी कार्रवाई, बैंक धोखाधड़ी मामले में तीन गिरफ्तार
वृश्चिक राशि: 18 सितंबर को मिलेगा छिपा हुआ खजाना, लेकिन ये गलती मत करना!
छत्तीसगढ़ और राजस्थान में पीएम मोदी के जन्मदिन पर सेवा पखवाड़ा और विकास कार्यों का शुभारंभ